महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 14 श्लोक 78-87

चतुर्दश (14) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: चतुर्दश अध्याय: श्लोक 78-87 का हिन्दी अनुवाद
  • तब शल्‍य ने समरभूमि में अभिमन्‍यु पर सम्‍पूर्णत: लोहे की बनी हुई एक स्‍वर्णभूषित भयंकर शक्ति छोड़ी, जो अग्नि शिखा के समान प्रज्‍वलित हो रही थी। (78)
  • जैसे गरुड़ उड़ते हुए श्रेष्‍ठ नाग को पकड़ लेते हैं, उसी प्रकार अभिमन्‍यु ने उछलकर उस शक्ति को पकड़ लिया और म्‍यान से तलवार खींच ली। (79)
  • अमित तेजस्‍वी अभिमन्‍यु की वह फुर्ती और शक्ति देखकर सब राजा एक साथ सिंहनाद करने लगे। (80)
  • उस समय शत्रुवीरों का संहार करने वाले सुभद्राकुमार ने वैदूर्यमणि की बनी हुई तीखी धारवाली उसी शक्ति को अपने बाहुबल से शल्‍य पर चला दिया। (81)
  • केंचुल से छूटकर निकले हुए सर्प के समान प्रतीत होने वाली उस शक्ति ने शल्‍य के रथ पर पहुँचकर उनके सारथि को मार डाला और उसे रथ से नीचे गिरा दिया। (82)
  • यह देखकर विराट, द्रुपद, धृष्‍टकेतु, युधिष्ठिर, सात्‍यकि, केकयराजकुमार, भीमसेन, धृष्टद्युम्न, शिखण्‍डी, नकुल, सहदेव तथा द्रौपदी के पाँचों पुत्र 'साधु,साधु'[1] कहकर कोलाहल करने लगे। (83)
  • उस समय युद्धभूमि में पीठ न दिखाने वाले सुभद्राकुमार अभिमन्‍यु का हर्ष बढ़ाते हुए नाना प्रकार के बाण-संचालजनित शब्‍द और महान सिंहनाद प्रकट होने लगे। (84)
  • महाराज! उस समय आपके पुत्र शत्रु की विजय की सूचना देने वाले उस सिंहनाद को नहीं सह सके। वे सब-के-सब सहसा सब ओर से अभिमन्‍यु पर पैने बाणों की वर्षा करने लगे, मानो मेघ पर्वत पर जल की धाराएँ बरसा रहे हों। (85-86)
  • अपने सारथि को मारा गया देख कौरवों का प्रिय करने की इच्‍छा वाले शत्रुसूदन शल्‍य ने कुपित होकर सुभद्राकुमार पर पुन: आक्रमण किया। (87)
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गत द्रोणाभिषेक पर्व में अभिमन्‍यु का पराक्रमविषयक चौदहवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बहुत अच्‍छा, बहुत अच्‍छा

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