महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 133 श्लोक 37-45

एकत्रिंशदधिकशतकम (133) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: एकत्रिंशदधिकशतकम अध्याय: श्लोक 37-45 का हिन्दी अनुवाद

ऐसा आदेश मिलने पर आपके पुत्र दुर्योधन से ‘बहुत अच्छा’ कहकर आपके दूसरे पुत्र दुर्जय ने युद्ध में आसक्त हुए भीमसेन पर बाणों की वर्षा करते हुए आक्रमण किया। उसने नौ बाणों से भीमसेन को, आठ बाणों से उनके घोड़ों को और छः बाणों से सारथि को घायल कर दिया। फिर तीन बाणों द्वारा उनकी ध्वजा पर आघात करके उन्हें भी पुनः सात बाणों से बींध डाला।

तब भीमसेन ने भी अत्यन्त कुपित होकर अपने शीघ्रगामी बाणों द्वारा दुर्जय (दुष्पराजय) के मर्म स्थल को विदीर्ण करके उसे सारथि और घोड़ों सहित यमलोक भेज दिया। आभूषण भूषित दुर्जय अपने क्षत विक्षत अंगों से पृथ्वी पर गिरकर चोट खाये हुए सर्प के समान छटपटाने लगा। उस समय कर्ण ने शोकार्त होकर रोते-रोते आपके पुत्र की परिक्रमा की। इस प्रकार अपने अत्यनत वैरी कर्ण को रथहीन करके मुसकराते हुए भीमसेन ने उसे बाण समूहों, शतघ्नियों और शंकाओं से आच्छादित कर दिया। भीमसेन के बाणों से क्षत विक्षत होने पर भी शत्रुओं को संताप देने वाला अतिरथी कर्ण समरभूमि में कुपित भीमसेन को छोड़कर भागा नहीं।

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गत जयद्रथ वध पर्व में भीमसेन और कर्ण का युद्ध विषयक एक सौ तैंतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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