महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 12 श्लोक 17-31

द्वादश (12) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: द्वादश अध्याय: श्लोक 17-31 का हिन्दी अनुवाद


  • सत्‍यप्रतिज्ञ राजा युधिष्ठिर को जीते-जी पकड़ ले आने पर यदि उन्‍हें पुन: जूए में जीत लिया जाय तो उनमें भक्ति रखने वाले पाण्‍डव पुन: वन में चले जायँगे। (17)
  • इस प्रकार निश्चय ही मेरी विजय दीर्घकाल तक बनी रहेगी। इसीलिये मैं कभी धर्मराज युधिष्ठिर का वध करना नहीं चाहता। (18)
  • राजन! द्रोणाचार्य प्रत्‍येक बात के वास्‍तविक तात्‍पर्य को तत्‍काल समझ लेने वाले थे। दुर्योधन के उस कुटिल मनोभाव को जान कर बुद्धिमान द्रोण ने मन-ही-मन कुछ विचार किया और अन्‍तर रखकर उसे वर दिया। (19)
  • द्रोणाचार्य बोले- राजन! यदि वीरवर अर्जुन युद्ध में युधिष्ठिर की रक्षा न करते हों, तब तुम पाण्‍डवश्रेष्‍ठ युधिष्ठिर को अपने वश में आया हुआ ही समझों। (20)
  • तात! रणक्षेत्र में इन्‍द्र सहित सम्‍पूर्ण देवता और असुर भी अर्जुन का सामना नहीं कर सकते हैं। अत: मुझमें भी उन्‍हें जीतने का उत्‍साह नहीं है। (21)
  • इसमें संदेह नहीं कि अर्जुन मेरा शिष्‍य है और उसने पहले मुझसे ही अस्‍त्र विधा सीखी है, तथापि वह तरुण है। अनेक प्रकार के पुण्‍य कर्मों से युक्‍त है। विजय अथवा मृत्यु इन दोनों में से एक का वरण करने का दृढ़ निश्चय कर चुका है। इन्‍द्र और रुद्र आदि देवताओं से पुन: बहुत से दिव्‍यास्‍त्रों की शिक्षा पा चुका है और तुम्‍हारे प्रति उसका अमर्ष बढ़ा हुआ है। इसलिये राजन! मैं अर्जुन से लड़ने का उत्‍साह नहीं रखता हूँ। (22-23)
  • अत: जिस उपाय से भी सम्‍भव हो, तुम उन्‍हें युद्ध से दूर हटा दो। कुन्‍तीकुमार अर्जुन के रणक्षेत्र से हट जाने पर समझ लो कि तुमने धर्मराज को जीत लिया। (24)
  • नरश्रेष्‍ठ! उनको पकड़ लेने में ही तुम्‍हारी विजय है, उनके वध में नहीं; परंतु इसी उपाय से तुम उन्‍हें पकड़ पाओगे। (25)
  • राजन! पुरुषसिंह कुन्‍तीपुत्र अर्जुन के युद्ध से हट जाने पर यदि वे दो घड़ी भी मेरे सामने संग्राम में खड़े रहेंगे तो मैं आज सत्‍यधर्म परायण राजा युधिष्ठिर को पकड़कर तुम्‍हारे वश में ला दूँगा, इसमें संशय नहीं है। (26-27)
  • राजन! अर्जुन के समीप तो समरभूमि में इन्‍द्र आदि सम्‍पूर्ण देवता और असुर भी युधिष्ठिर को नहीं पकड़ सकते हैं। (28)
  • संजय कहते हैं- राजन! द्रोणाचार्य ने कुछ अन्‍तर रखकर जब राजा युधिष्ठिर को पकड़ लाने की प्रतिज्ञा कर ली, तब आपके मूर्ख पुत्र उन्‍हें कैद हुआ ही मानने लगे। (29)
  • आपका पुत्र दुर्योधन यह जानता था कि द्रोणाचार्य पाण्‍डवों के प्रति पक्षपात रखते हैं, अत: उसने उनकी प्रतिज्ञा को स्थिर रखने के लिये उस गुप्‍त बात को भी बहुत लोगों में फैला दिया। (30)
  • शत्रुओं का दमन करने वाले आर्य धृतराष्‍ट्र! तदनन्‍तर दुर्योधन ने युद्ध की सारी छावनियों में तथा सेना के विश्राम करने के प्राय: सभी स्‍थानों पर द्रोणाचार्य की युधिष्ठिर को पकड़ लाने की उस प्रतिज्ञा को घोषित करवा दिया। (31)


इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोण पर्व के अन्‍तर्गत द्रोणाभिषेक पर्व में द्रोणप्रतिज्ञा विषयक बारहवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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