महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 128 श्लोक 19-40

अष्टविंशत्यधिकशतकम (128) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: अष्टविंशत्यधिकशतकम अध्याय: श्लोक 19-40 का हिन्दी अनुवाद

राजन! उस युद्ध स्थल में भीमसेन द्वारा फेंके गये आचार्य द्रोण तुरंत ही दूसरे रथ पर आरूढ़ हो पुनः व्यूह के द्वार पर जा पहुँचे। उस समय गुरु द्रोण का उत्साह भंग हो गया था। उन्हें उस अवस्था में आते देख भीम ने पुनः वेग पूर्वक आगे बढ़कर उनके रथ की धुरी पकड़ ली और अत्यन्त रोष में भरकर उस अतिरथी वीर द्रोण को भी पुनः रथ के साथ ही फेंक दिया। इस प्रकार भीमसेन ने खेल सा करते हुए आठ रथ फेंके। परंतु द्रोणाचार्य पुनः पलक मारते-मारते अपने रथ पर बैठे दिखायी देते थे। उस समय आपके योद्धा विस्मय से आँखें फाड़ -फाड़कर यह दृश्य देख रहे थे। कुरुनन्दन! इसी समय भीमसेन का सारथि तुरंत ही घोड़ों को हाँककर वहाँ ले आया। वह एक अद्भुत सी बात थी। तत्पश्चात महाबली भीमसेन पुनः अपने रथ पर आरूढ़ हो आपके पुत्र की सेना पर वेग पूर्वक टूट पड़े। जैसे उठी हुई आँधी वृक्षों को उखाड़ फेंकती है और सिंधु का वेग पर्वतों को विदीर्ण कर देता है, उसी प्रकार युद्ध स्थल में क्षत्रियों को रौंदते और कौरव सेना को विदीर्ण करते हुए भीमसेन आगे बढ़ गये।

फिर अत्यन्त बलशाली वीर भीमसेन कृतवर्मा द्वारा सुरक्षित भोजवंशियों की सेना के पास जा पहुँचे और उसे वेग पूर्वक मथकर आगे चले गये। जैसे सिंह गाय बैलों को जीत लेता है, उसी प्रकार पाण्डु नन्दन भीम ने ताली बजाकर शत्रु सेनाओं को संत्रस्त करते हुए समस्त सैनिकों पर विजय पा ली। उस समय कुन्ती कुमार भीमसेन भोजवंशियों की सेना को लाँघकर दरदों की विशाल वाहिनी को परास्त करके महारथी सात्यकि को शत्रुओं के साथ युद्ध करते देख सावधान हो रथ के द्वारा वेग पूर्वक आगे बढ़े। महाराज! अर्जुन को देखने की इच्छा लिये पाण्डु नन्दन भीमसेन समरांगण में आपके योद्धाओं को लाँघते हुए वहाँ पहुँचे थे पराक्रमी भीम ने वहाँ सिंधुराज जयद्रथ के वध के लिये पराक्रम करते हुए युद्ध में तत्पर महारथी अर्जुन को देखा। महाराज! उन्हें देखते ही पुरुषसिंह भीम ने वर्षा काल में गरजते हुए मेघ के समान बड़े जोर से सिंहनाद किया। कुरुनन्दन! गरजते हुए भीमसेन के उस भयंकर सिंहनाद को युद्ध स्थल में कुन्ती कुमार अर्जुन तथा भगवान श्रीकृष्ण ने सुना।

उस महारथी वीर के सिंहनाद को एक ही साथ सुनकर उन दोनों वीरों ने भीमसेन को देखने की इच्छा प्रकट करते हुए बारंबार गर्जना की। महाराज! गरजते हुए दो साँड़ों के समान अर्जुन और श्रीकृष्ण महान सिंहनाद करते हुए आगे बढ़ने लगे। नरेश्वर! भीमसेन तथा धनुर्धर अर्जुन की गर्जना सुनकर धर्मपुत्र युधिष्ठिर बड़े प्रसन्न हुए। उन दोनों का सिंहनाद सुनकर राजा का शोक दूर हो गया। वे शक्तिशाली नरेश समरभूमि में अर्जुन की विजय के लिये शुभ कामना करने लगे। मदोन्मत्त भीमसेन के बारंबार गर्जना करने पर धर्मात्माओं में श्रेष्ठ धर्मपुत्र महाबाहु युधिष्ठिर मुसकराकर मन ही मन कुछ सोचते हुए अपने हृदय की बात इस प्रकार कहने लगे -‘भीम! तुमने सूचना दे दी और गुरुजन की आज्ञा का पालन कर दिया। पाण्डु नन्दन! जिनके शत्रु तुम हो, उन्हें युद्ध में विजय नहीं प्राप्त हो सकती। सौभाग्य की बात है कि संग्राम भूमि में सव्यसाची अर्जुन जीवित है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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