महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 120 श्लोक 19-40

विंशत्‍यधिकशततम (120) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

Prev.png

महाभारत: द्रोण पर्व: विंशत्‍यधिकशततम अध्याय: श्लोक 19-40 का हिन्दी अनुवाद

अमित तेजस्‍वी सात्‍यकि जब इस प्रकार कह रहे थे, उसी समय युद्ध के लिये उत्‍सुक हुए आपके सारे सैनिक शीघ्र ही उनके समीप आ पहुँचे। वे ‘दौड़ो, मारो, ठहरो, देखो-देखो’ इत्‍यादि बातें बोल रहे थे। शीघ्रतापूर्वक अस्त्र चलाने वाले एवं विचित्र युद्ध की कला में निपुण शिनिप्रवर सात्‍यकि ने हंसते हुए वहाँ उपर्युक्त बातें बोलने वाले तीन सौ घुड़सवारों तथा चार सौ हाथीसवार को अपने तीखे बाणों से मार गिराया। सात्‍यकि तथा आपकी सेना के धनुर्धरों का वह नरसंहारकारी युद्ध देवासुर-संग्राम के समान अत्‍यन्‍त भयंकर हो चला। माननीय नरेश! शिनिपौत्र सात्‍यकि ने अपने विषधर सर्प के समान भयंकर बाणों द्वारा मेघों की घटा के समान प्रतीत होने वाली आपके पुत्र की सेना का अकेले ही सामना किया।

महाराज! उस समरांगण में पराक्रमी सात्‍यकि बाणों के समूह से आच्‍छादित हो गये थे, तो भी उनहोंने मन में तनिक भी घबराहट नहीं आने दी और आपके बहुत-से सैनिकों का संहार कर डाला। शक्तिशाली राजेन्‍द्र! वहाँ सबसे महान आश्चर्य की बात मैंने यह देखी कि सात्‍यकि का कोई भी बाण व्‍यर्थ नहीं गया। रथ, हाथी और घोड़ों से भरी तथा पैदल रुपी लहरों से व्‍याप्‍त हुई आपकी सागर-सदृश सेना सात्‍यकिरुपी तटभूमि के समीप आकर अवरुद्ध हो गयी। सात्‍यकि के बाणों द्वारा सब ओर से मारी जाती हुई आप की सेना के पैदल, हाथी और घोड़े सभी घबरा गये और बारंबार चक्कर काटने लगे। सर्दी से पीड़ित हुई गायों के समान आपकी सारी सेना वहीं चक्‍कर लगा रही थी। मैंने वहाँ एक भी पैदल, रथी, हाथी तथा सवारसहित घोड़े को ऐसा नहीं देखा, जो युयुधान के बाणों से विद्ध न हुआ हो। राजन! नरेश्वर! सात्‍यकि ने आपके सैनिकों का जैसा संहार किया था, वैसा वहाँ अर्जुन ने भी नहीं किया था। शिनिपौत्र पुरुषश्रेष्ठ सात्‍यकि निर्भय हो बड़ी फुर्ती से अस्त्र चलाते और अपनी कुशलता का प्रदर्शन करते हुए अर्जुन से भी अधिक पराक्रमपूर्वक युद्ध कर रहे थे। तब राजा दुर्योधन ने तीन बाणों से सात्‍यकि के सारथि को और चार पैने बाणों द्वारा उनके घोड़ों को घायल कर दिया। तत्‍पश्चात सात्‍यकि को भी पहले तीन बाणों से बींधकर फिर आठ बाणों द्वारा गहरी चोट पहुँचायी।

तदनन्‍तर दु:शासन ने सोलह, शकुनि ने पच्चीस और चित्रसेन ने पांच बाणों द्वारा शिनिप्रवर सात्‍यकि को बींध डाला। इसके बाद दु:सह ने सात्‍यकि की छाती में पंद्रह बाण मारे। महाराज! इस प्रकार उन बाणों से आहत होकर वृष्टिवंश के सिंह सात्‍यकि ने मुसकराते हुए ही उन सबको ही तीन-तीन बाणों से घायल कर दिया। उस युद्ध स्‍थल में शीघ्रतापूर्वक पराक्रम करने वाले शिनिवंशी सात्‍यकि अपने अत्‍यन्‍त तेज बाणों द्वारा शत्रुओं को गहरी चोट पहुँचाकर बाज के समान सब ओर विचरने लगे। उन्‍होंने सुबलपुत्र शकुनि के धनुष और दस्‍ताने काट कर दुर्योधन की छाती में तीन बाण मारे। फिर शिनिवंश के प्रमुख वीर ने चित्रसेन को सौ, दु:सह को दस और दु:शासन को बीस बाणों से घायल कर दिया। प्रजानाथ। तत्‍पश्चात आपके साले ने दूसरा धनुष लेकर सात्‍यकि को पहले आठ बाण मारे। फिर पांच बाणों से उन्‍हें घायल कर दिया। दु:शासन ने दस और दु:सह ने भी तीन बाण मारे। राजन! दुर्मुख ने बारह बाणों से सात्‍यकि को क्षत-विक्षत कर दिया। भारत! इसके बाद दुर्योधन ने तिहत्तर बाणों से युयुधान को घायल करके तीन पैने बाणों द्वारा उनके सारथि को भी बींध डाला।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः