महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 113 श्लोक 41-67

त्रयोदशाधिकशततम (113) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व:त्रयोदशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 41-67 का हिन्दी अनुवाद

जहाँ सुतपुत्र कर्ण को आगे करके बहुत से दाक्षिणात्‍य योद्धा खड़े हैं, हाथी, घोड़ों और रथों से भरी हुर्इ जो यह सेना दृष्टिगोचर हो रही है, उसमें अनेक देशों के पैदल सैनिक मौजूद हैं। तुम वहाँ भी मेरे रथ को ले चलो। युद्ध से पीछे न हटने वाले महाभाग युयुधान को आगे बढ़ते देख द्रोणाचार्य कुपित हो उठे और वे बहुत-से बाणों की वर्षा करते हुए कुछ दूर तक उनके पीछे-पीछे दौड़े। सात्‍यकि कर्ण की विशाल वाहिनी को अपने पैने बाणों द्वारा घायल करके अपार कौरवी सेना में घुस गये। सात्‍यकि के प्रवेश करते ही सारे कौरव सैनिक भागने लगे। तब क्रोध में भरे हुए कृतवर्मा ने उन्‍हें आ घेरा। उसे आते देख पराक्रमी सात्‍यकि ने छ: बाणों द्वारा उसे चोट पहुँचाकर चार बाणों से उसके चारों घोड़ों को शीघ्र ही घायल कर दिया। तदनन्‍तर पुन: झुकी हुई गाँठ वाले सोलह बाण मारकर सात्‍यकि ने कृतवर्मा की छाती में गहरी चोट पहुँचायी।

महाराज! सात्‍यकि के प्रचण्‍ड तेज वाले बहुसंख्‍यक बाणों-द्वारा घायल होने पर कृतवर्मा सहन न कर सका। राजन! वक्रगति से चलने वाले अग्नि के समान तेजस्‍वी वत्‍सदन्‍तनामक बाण को धनुष पर रखकर कृतवर्मा ने उसे कान तक खींचा और उसके द्वारा सात्‍यकि की छाती में प्रहार किया। वह बाण सात्‍यकि के शरीर और कवच दोनों को विदीर्ण करके खून से लथपथ हो पंख एवं पत्रसहित धरती में समा गया। राजन्! कृतवर्मा उत्तम अस्त्रों का ज्ञाता है। उसने बहुत-से बाण चलाकर बाण समूहों सहित सात्‍यकि के शरासन को काट दिया। नरेश्‍वर! इसके बाद क्रोध में भरे हुए कृतवर्मा ने सत्‍यपराक्रमी सात्‍यकि की छाती में पुन: दस पैने बाणों द्वारा गहरा आघात किया। धनुष कट जाने पर शक्तिशाली शूरवीरों में श्रेष्ठ सात्‍यकि ने कृतवर्मा की दाहिनी भुजा पर शक्ति द्वारा ही प्रहार किया। तदनन्‍तर दूसरे सुदृढ़ धनुष को अच्‍छी तरह खींचकर सात्‍यकि तुरंत ही सैकड़ों और हजारों बाणों की वर्षा की और रथ सहित कृतवर्मा को सब ओर से ढक दिया।

राजन्! रणक्षेत्र में इस प्रकार कृतवर्मा को आच्‍छादित करके सात्‍यकि ने एक भल्‍ल द्वारा उसके सारथि का सिर काट दिया। उनके द्वारा मारा गया सारथि कृतवर्मा के विशाल रथ से नीचे गिर पड़ा। फिर तो सारथि के बिना उसके घोड़े बड़े जोर से भागने लगे। इससे कृतवर्मा को बड़ी घबराहट हुई; परंतु यह वीर स्‍वयं ही घोड़ों को काबू में करके हाथ में धनुष ले युद्ध के लिये डट गया। उसके इस कर्म की सभी सैनिकों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की। उसने थोड़ी ही देर में आश्‍वस्‍त होकर अपने उत्तम घोड़ों को आगे बढ़ाया तथा स्‍वंय निर्भय रहकर शत्रुओं के हदय में महान भय उत्‍पन्‍न कर दिया। राजेन्‍द्र! यही अवसर पाकर सात्‍यकि वहाँ से आगे निकल गये। तब कृतवर्मा ने भीमसेन पर धावा किया। कृतवर्मा की सेना से निकलकर युयुधान तुरंत ही काम्‍बोजों की विशाल वाहिनी के पास आ पहुँचे।

यहाँ बहुत-से शूरवीर महारथियों ने उन्‍हें आगे बढ़ने से रोक दिया। महाराज! तो भी उस समय सत्‍यपराक्रमी सात्‍यकि विचलित नहीं हुए। द्रोणाचार्य ने अपनी बिखरी हुई सेना को एकत्र करके उसकी रक्षा का भार कृतवर्मा को सौंपकर समरांगण में सात्‍यकि के साथ युद्ध करने की इच्‍छा से उद्यत हो उनके पीछे-पीछे दौड़े। इस प्रकार उन्‍हें युयुधान के पीछे दौड़ते देख पांडव सेना के प्रमुख वीर हर्ष में भरकर द्रोणाचार्य को रोकने का प्रयत्‍न करने लगे। परंतु रथियों में श्रेष्‍ठ महारथी कृतवर्मा के पास पहुँचकर भीमसेन का आगे करके आक्रमण करने वाले पाञ्चालों का उत्‍साह नष्‍ट हो गया। राजन! वीर कृतवर्मा ने पराक्रम करके उनको रोक दिया। वे सभी वीर कुछ-कुछ शिथिल एवं अचेत-से हो रहे थे, तो भी अपनी विजय के लिये प्रयत्‍नशील थे; परंतु कृतवर्मा ने सब ओर से उनके उपर बाण-समूहों की वर्षा करके उनके वाहनों को व्‍याकुल कर दिया। कृतवर्मा द्वारा रोके जाने पर वे पाण्‍डव वीर रणक्षेत्र में महान यश की इच्‍छा करते हुए उसी की सेना के साथ युद्ध की अभिलाषा करके श्रेष्‍ठ पुरुषों के समान डटकर खड़े हो गये।

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तगर्त जयद्रथ पर्व में सात्‍यकि प्रवेश विषयक एक सौ तेरहवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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