महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 104 श्लोक 19-35

चतुरधिकशततम (104) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: चतुरधिकशततम अध्याय: श्लोक 19-35 का हिन्दी अनुवाद

प्रभो! आप की वह सेना शंख के शब्‍द से व्‍याप्‍त होने के कारण अस्‍वस्‍थ-सी दिखायी देती थी। उसके हाथी, घोड़े और रथी सभी उद्विग्‍न हो उठे थे। शूरवीरों ने शंख ध्‍वनि से आकाश को विद्ध सा कर डाला। वह वज्र की गड़गड़ाहट से व्‍याप्‍त सा होकर अत्‍यन्त उद्वेग जनक हो गया। राजन! प्रलयकाल के समान सब ओर फैला हुआ वह महान शब्‍द सम्‍पूर्ण दिशाओं को प्रतिध्‍वनित करने और आपकी सेना को डराने लगा।

तदनन्‍तर दुर्योधन तथा आठ महारथी नरेशों ने जयद्रथ की रक्षा के लिये अर्जुन को घेर लिया। उस समय अश्वत्‍थामा ने भगवान श्रीकृष्‍ण को तिहत्‍तर बाण मारे, तीन भल्‍लों से अर्जुन को चोट पहुँचायी और पांच से उनके ध्‍वज एवं घोड़ों को घायल कर दिया। श्रीकृष्‍ण के घायल हो जाने पर अर्जुन अत्‍यन्‍त कुपित हो उठे। उन्‍होंने छ: सौ बाणों द्वारा अश्वत्‍थामा को क्षत-विक्षत कर दिया। फिर पराक्रमी अर्जुन ने दस बाणों से कर्ण को और तीन बाणों द्वारा वृषसेन को घायल करके राजा शल्‍य के बाण सहित धनुष को मुट्ठी पकड़ने की जगह से काट डाला। तब शल्य ने दूसरा धनुष हाथ में लेकर पाण्‍डुपुत्र अर्जुन को बींध डाला। भूरिश्रवा ने सान पर तेज किये हुए सूवर्णमय पंख वाले तीन बाणों से उन्‍हें घायल कर दिया। फिर कर्ण ने बत्‍तीस , वृषसेन ने सात, जयद्रथ ने तिहत्‍तर, कृपाचार्य ने दस तथा मद्रराज शल्‍य ने भी दस बाण मारकर रणक्षेत्र में अर्जुन को बींध डाला। तत्‍पश्रात अश्वत्‍थामा ने अर्जुन पर साठ बाण बरसाये, फिर श्रीकृष्‍ण को बीस और अर्जुन को भी पांच बाण मारे।

तब श्रीकृष्‍ण जिनके सारथि हैं, उन श्वेतवाहन पुरुषसिंह अर्जुन ने जोर-जोर से हंसते और हाथों की फुर्ती दिखाते हुए उन सबको बींधकर बदला चुकाया। कर्ण को बारह और वृषसेन को तीन बाणों से घायल कर‍के राजा शल्य के बाण सहित धनुष को मुट्ठी पकड़ने की जगह से पुन: काट डाला। इसके बाद भूरिश्रवा को तीन और शल्य को दस बाणों से बींधकर अग्‍नि की ज्‍वाला के समान आकार वाले आठ तीखे बाणों द्वारा अश्वत्‍थामा को घायल कर दिया। तत्‍पश्रात पचीस, जयद्रथ को सौ तथा अश्वत्‍थामा को पुन: उन्‍होंने सत्‍तर बाण मारे। भूरिश्रवा ने कुपित होकर श्रीकृष्‍ण का चाबुक काट डाला और अर्जुन को तिहत्‍तर बाणों से गहरी चोट पहुँचायी। तदनन्‍तर जैसे प्रचंण्‍ड वायु बादलों को छिन्‍न-भिन्‍न कर देती है, उसी प्रकार श्‍वेत वाहन अर्जुन ने कुपित हो सैकड़ों तीखे बाणों द्वारा उन शत्रुओं को तुरंत पीछे हटा दिया।

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गत जयद्रथवध पर्व में संकुलयुद्ध विषयक एक सौ चारवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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