महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 195 श्लोक 40-50

पंचनवत्‍यधिकशततम (195) अध्याय: द्रोण पर्व (नारायणास्‍त्रमोक्ष पर्व)

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महाभारत: द्रोणपर्व: पंचनवत्‍यधिकशततम अध्याय: श्लोक 40-50 का हिन्दी अनुवाद

इस प्रकार पिता ने भगवान नारायण से यह अस्त्र प्राप्‍त किया और उनसे मुझे इसकी प्राप्ति हुई है। उसी अस्त्र से मैं रणभूमि में पाण्डव, पांचाल, मत्‍स्‍य और केकय योद्धाओं को उसी प्रकार खदेडूंगा, जैसा शचीपति इन्‍द्र ने असुरों को मार भगाया था। भारत! मैं जैसा-जैसा चाहूंगा, वैसा ही रूप धारण करके मेरे बाण शत्रुओं के पराक्रम करने पर भी उन पर पडेंगे। मैं युद्ध में स्थित होकर अपनी इच्‍छा के अनुसार पत्‍थरों की वर्षा करूंगा, लोहे की चोंच वाले पक्षियों द्वारा बड़े-बड़े महारथियों को भगा दूंगा तथा शत्रुओं पर तेज धार वाले फरसे भी बरसाउंगा, इसमें तनिक भी संशय नहीं है। इस प्रकार शत्रुओं को संताप देने वाला मैं महान नारायणास्त्र का प्रयोग करके पाण्‍डवों को पीड़ा देता हुआ अपने समस्‍त शत्रुओं का विध्‍वंस कर डालूंगा। मित्र, ब्राह्मण तथा गुरु से द्रोह करने वाले अत्‍यन्‍त निन्दित वह पांचालकुलकलंक पामर धृष्टद्युम्न भी आज मेरे हाथ से जीवित नहीं छूट सकेगा।

द्रोणपुत्र अश्वत्थामा की वह बात सुनकर कौरवों की सेना लौट आयी। फिर तो सभी पुरुषश्रेष्ठ वीर बड़े-बड़े शंख बजाने लगे। सबने प्रसन्‍न होकर रणभेरियां बजायी, सहस्‍त्रों डंके पीटे, घोड़ों की टापों और रथों के पहियों से पीड़ित हुई रणभूमि मानो आर्तनाद करने लगी। वह तुमुल ध्‍वनि आकाश, अन्‍तरिक्ष और भूतल को गुंजाने लगी। मेघ की गंभीर गर्जना के समान उस तुमुलनाद को सुनकर श्रेष्ठ पाण्‍डव महारथी एकत्र होकर गुप्‍त मंत्रणा करने लगे। भारत! द्रोणपुत्र अश्वत्थामा ने पूर्वोक्‍त बात कहकर जल से आचमन करके उस समय उस दिव्‍य नारायणास्‍त्र को प्रकट किया।

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोण पर्व के अन्‍तर्गत नारायणास्‍त्रमोक्ष पर्व में अश्‍वत्‍थामा का क्रोधविषयक एक सौ पंचानबेवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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