त्रिषष्टयधिकशततम (163) अध्याय: द्रोण पर्व (घटोत्कचवध पर्व)
महाभारत: द्रोणपर्व: त्रिषष्टयधिकशततम अध्याय: श्लोक 33-38 का हिन्दी अनुवाद
रात में होने वाला वह युद्ध मेघों की घटा से आच्छादित दिन के समान प्रतीत होता था। उस समय शक्तियों का समूह प्रचण्डवायु के समान चल रहा था। विशाल रथ मेघसमूह के समान दिखायी देते थे। हाथियों और घोड़ों के हींसने और चिग्घाड़ने का शब्द ही मानो मेघों का गम्भीर गर्जन था। अस्त्रसमूहों की वर्षा ही जल की वृष्टि थी तथा रक्त की धारा ही जलधारा के समान जान पड़ती थी। नरेन्द्र! जैसे शरत्काल में मध्यान्ह का सूर्य अपनी प्रखर किरणों से भारी संताप देता है, उसी प्रकार उस युद्धस्थल में महान अग्नि के समान तेजस्वी महामना विप्रवर द्रोणाचार्य पाण्डवों के लिये संतापकारी हो रहे थे। इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गतघटोत्कचवध पर्व में रात्रियुद्ध के अवसर पर पद्रोण का प्रकाश विषयक एक सौ तिरसठवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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