महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 159 श्लोक 83-100

एकोनषष्टयधिकशततम (159) अध्याय: द्रोण पर्व (घटोत्कचवध पर्व)

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महाभारत: द्रोणपर्व: एकोनषष्टयधिकशततम अध्याय: श्लोक 83-100 का हिन्दी अनुवाद

मामा के ऐसा कहने पर शस्त्र धारियों में श्रेष्ठ द्रोण कुमार अश्वत्थामा ने तुरंत ही दुर्योधन के पास जाकर इस प्रकार कहा- ‘गान्धारी नन्दन! कुरुकुल रत्न! मैं सदा तुम्हारा हित चाहने वाला हूँ। तुम मेरे जीते-जी मेरा अनादर करके स्वयं युद्ध में न जाओ। ‘सुयोधन! अर्जुन पर विजय पाने के सम्बन्ध में तुम्हें किसी प्रकार संदेह नहीं करना चाहिये। तुम खडे़ रहो। मैं अर्जुन को रोकूँगा’।

दुर्योधन बोला- द्विजश्रेष्ठ! हमारे आचार्य तो अपने पुत्र की भाँति पाण्डवों की रक्षा करते हैं और तुम भी सदा उनकी उपेक्षा ही करते हो। अथवा मेरे दुर्भाग्य से युद्ध में तुम्हारा पराक्रम मन्द पड़ गया है। तुम धर्मराज युधिष्ठिर अथवा द्रौपदी का प्रिय करने के लिये ऐसा करते हो, इसका मुझे पता नहीं है। मुझ लोभी को धिक्कार है, जिसके कारण किसी से पराजित न होने वाले और सुख भोगने के योग्य मेरे सभी भाई-बन्धु महान दुख उठा रहे हैं। कृपीकुमार अश्वत्थामा के सिवा दूसरा कौन ऐसा वीर है, जो शस्त्र वेत्ताओं में प्रधान, महादेव जी के समान पराक्रमी तथा शक्तिशाली होकर भी युद्ध में शत्रु का संहार नहीं करेगा। अश्वत्थामन! प्रसन्न होओ। मेरे इन शत्रुओं का नाश करो। तुम्हारे अस्त्रों के मार्ग में देवता और दानव भी नहीं ठहर सकते हैं। द्रोणकुमार! तुम अनुगामियों सहित पांचालों और सोमकों को मार डालो, फिर तुमसे ही सुरक्षित हो हम लोग अपने शेष शत्रुओं का संहार कर डालेंगे।

विप्रवर! ये यशस्वी पांचाल और सोमक क्रोध में भरकर दावानल के समान मेरी सेनाओं में विचर रहे हैं। इन्हीं के साथ केकय भी है। महाबाहो! नरश्रेष्ठ! वे किरीटधारी अर्जुन से सुरक्षित हो मेरी सेना का सर्वनाश न कर डालें। अतः पहले ही उन्हें रोको। शत्रुओं का दमन करने वाले माननीय भाई अश्वत्थामा! तुम शीघ्र ही जाओ। पहले करो या पीछे, यह कार्य तुम्हारे ही वश का है। महाबाहो! तुम पांचालों का वध करने के लिये ही उत्पन्न हुए हो। यदि तुम तैयार हो जाओ तो निश्चय ही सारे जगत को पांचालों से शून्य कर दोगे। पुरुषसिंह! सिद्ध पुरुषों ने तुम्हारे विषय में ऐसी ही बातें कही हैं। वे उसी रूप में सत्य होंगी। अतः तुम सेवकों सहित पांचालों का वध करो। मैं तुमसे यह सच कहता हूँ कि तुम्हारे बाणों के मार्ग में इन्द्र सहित सम्पूर्ण देवता भी नहीं ठहर सकते, फिर कुन्ती के पुत्रों और पांचालों की तो बिसात ही क्या है। वीर! सोमकों सहित पाण्डव संग्राम में तुम्हारे साथ बलपूर्वक युद्ध करने में समर्थ नहीं हैं। यह मैं तुमसे सत्य कहता हूँ। महाबाहो! जाओ, जाओ। हमारे इस कार्य में विलम्ब नहीं होना चाहिये। देखो, अर्जुन के बाणों से पीड़ित होकर यह सेना भागी जा रही है। दूसरों को मान देने वाले महाबाहु वीर! तुम अपने दिव्य तेज से पांचालों और पाण्डवों का निग्रह करने में समर्थ हो।

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्वके अन्‍तर्गत घटोत्‍कचवधपर्व में रा‍त्रियुद्ध के प्रसंग में दुर्योधन का वचनविषयक एक सौ उनसठवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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