महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 93 श्लोक 17-40

त्रिनवतितम (93) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: त्रिनवतितम अध्याय: श्लोक 17-40 का हिन्दी अनुवाद

यदि वे मुझसे युद्ध करेंगे तो में उन्हें निःसंदेह मार गिराऊँगा। जैसे महासागर अपनी तट भूमि को लाँघकर आगे नहीं बढ़ता, उसी प्रकार वे भी मुझे लाँघ नहीं सकते। आज मैं अर्जुन, श्रीकृष्ण और उस घमंडी भीमसेन को तथा बचे-खुचे दूसरे शत्रुओं को भी मार डालूँ, तभी कर्ण के ऋण से मुक्त हो सकता हूँ। कुरुराज दुर्योधन की वह श्रेष्ठ शूरवीरों के योग्य बात सुनकर सारथि ने सोने के साज-बाज से सजे हुए घोड़ों को धीरे-धीरे आगे बढ़ाया।

माननीय नरेश! उस समय रथों, घोड़ों और हाथियों से रहित आपके केवल पच्चीस हजार पैदल सैनिक ही युद्ध के लिये डटे हुए थे। उन सबको क्रोध में भरे हुए भीमसेन और धृष्टद्युम्न का डटकर सामना करने लगे। उनमें से कितने ही योद्धा भीमसेन और धृष्टद्युम्न के नाम ले लेकर उन्हें युद्ध के लिये ललकारने लगे। कुन्ती नन्दन भीमसेन युद्ध धर्म का पालन करने वाले थे, इसलिये उन्होंने स्वयं रथ पर बैठकर भूमि पर खडे़ हुए पैदल- सैनिकों के साथ युद्ध नहीं किया। उन्हें अपने बाहुबल का पूरा भरोसा था। वे दण्डपाणि यमराज के समान सुवर्णजटित विशाल गदा हाथ में लेकर आपके समस्त सैनिकों का वध करने लगे। वे पैदल सैनिक भी अपने प्यारे प्राणों का मोह छोड़कर उस युद्ध में भीमसेन की ओर उसी प्रकार दौडे़, जैसे पतंग आग पर टूट पड़ते हैं। जैसे प्राणियों के समुदाय यमराज को देखते ही प्राण त्याग देते हैं, उसी प्रकार वे रोषभरे रणदुर्भद सैनिक भीमसेन से टक्कर लेकर सहसा नष्ट हो गये। हाथ में गदा लिये बाज के समान विचरते हुए महाबली भीमसेन आप के उन पचीसों हजार सैनिकों को मार गिराया।

सत्यपराक्रमी महाबली भीमसेन उस पैदल सेना का संहार करके धृष्टद्युम्न को आगे किये वहीं खडे़ रहे। दूसरी ओर पराक्रमी अर्जुन ने रथसेना पर आक्रमण किया। माद्रीकुमार नकुल-सहदेव और महारथी सात्यकि हर्ष में भरकर दुर्योधन की सेना का संहार करते हुए बड़े वेग से शकुनि पर टूट पड़े। वे अपने पैने बाणों द्वारा उसके बहुत से घुड़सवारों को मार कर तुरन्त ही उसकी ओर भी दौडे़। फिर तो वहाँ बड़ा भारी युद्ध होने लगा।

प्रभो! अर्जुन भी आपकी रथसेना के समीप जाकर त्रिभुवन विख्यात गाण्डीव धनुष की टंकार करने लगे। बहुतों के रथ नष्ट हो गये और कितने ही बाणों की मार से अत्यन्त घायल हो गये। इस प्रकार पच्चीस हजार पैदल सैनिक काल के गाल में चले गये। पांचाल कुमार, पांचाल महारथी और महामनस्वी पुरुषसिंह धृष्टद्युम्न उन पैदल सैनिकों का संहार करके भीमसेन को आगे किये शीघ्र ही वहाँ दिखायी दिये। वे महाधनुर्धर, तेजस्वी और शत्रुसमूहों को संताप देने वाले हैं। धृष्टद्युम्न के रथ के घोडे़ कबूतर के समान रंगवाले थे, उनकी ध्वजा पर कचनार के वृक्ष का चिह्न था। धृष्टद्युम्न को रण में उपस्थित देख आपके योद्धा भय से भाग खडे़ हुए। गान्धार राज शकुनि शीघ्रतापूर्वक अस्त्र चला रहा था, यशस्वी माद्रीकुमार नकुल-सहदेव और सात्यकि तुरंत ही उसका पीछा करते दिखायी दिये। माननीय नरेश! चेकितान, शिखण्डी और द्रौपदी के पाँचों पुत्र आपकी विशाल सेना का विनाश करके शंख बजाने लगे। उन सबने आपके सैनिकों को पीठ दिखाकर भागते देख उनका उसी प्रकार पीछा किया, जैसे साँड़ रोष में भरे हुए दूसरे साँड़ों को जीतकर उन्हें खदेड़ने लगते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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