महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 85 श्लोक 25-39

पंचाशीतितम (85) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: पंचाशीतितम अध्याय: श्लोक 25-39 का हिन्दी अनुवाद

महासमर में सहस्रों बाण धारण करने वाले भयंकर नरवीर महारथी अर्जुन को अपनी ओर आते देख कर्ण कुमार वृषसेन भी उनकी ओर उसी प्रकार दौड़ा, जैसे पूर्वकाल में नमुचिने देवराज इन्द्र पर आक्रमण किया था। फिर महानुभाव कर्ण पुत्र वीर वृषसेन युद्धस्थल में कुन्तीकुमार अर्जुन को तुरन्त ही एक तीखें बाण से घायल करके बड़े जोर-जोर से गर्जना करने लगा। ठीक वैसे ही, जैसे नमुचि ने इन्द्र को बींधकर सिंहनाद किया था। इसके बाद वृषसेन ने भयंकर बाणों द्वारा अर्जुन की बायीं भुजा मूलभाग में पुनः प्रहार किया तथा नौ बाणों से श्रीकृष्ण को भी चोट पहुँचाकर दस बाणों द्वारा कुन्तीकुमार अर्जुन को फिर घायल कर दिया। वृषसेन के चलाये हुए उन बाणों द्वारा पहले ही आहत होकर श्वेतवाहन अर्जुन के मन में थोड़ा-सा क्रोध जाग्रत हुआ। फिर उन्होंने मन ही मन कर्ण कुमार के वध का निश्चय किया। तदनन्तर किरीटधारी महात्मा अर्जुन ने युद्धस्थल में कर्ण पुत्र के वध का दृढ़ निश्चय करके अपने ललाट में स्थित भौहों को क्रोधपूर्वक तीन जगह से टेड़ी करके युद्ध के मुहाने पर शीघ्रतापूर्वक बाणों का प्रहार आरम्भ किया। उस समय उनके नेत्र कुछ लाल हो गये थे। वे यमराज जैसे शत्रु को भी मार डालने में समर्थ थे।

उस समय उन्होंने मुस्कराते हुए वहाँ कर्ण, दुर्योधन और अश्वत्थामा आदि सब वीरों को लक्ष्य करके कहा- कर्ण! आज युद्धस्थल में मैं तुम्हारे देखते-देखते उस उग्रपराक्रमी वीर वृषसेन को अपने पैने बाणों द्वारा यमलोक भेज दूँगा। मेरा वेगशाली वीर पुत्र महारथी अभिमन्यु अकेला था। में उसके साथ नहीं था। उस अवस्था में तुम सब लोगों ने मिलकर उसका वध किया था। तुम्हारे उस कर्म को सब लोग खोटा बताते हैं; परंतु आज मैं तुम सब लोगों के सामने वृषसेन का वध करूँगा। रथ पर बैठे महारथियों! अपने इस पुत्र को बचा सको तो बचाओं। मैं अर्जुन आज रणभूमि में पहले उग्रवीर वृषसेन को मारूँगा; फिर तुझ विवेक शून्य सूतपुत्र का भी वध कर डालूँगा। कर्ण! तू ही इस कलह की जड़ है। दुर्योधन का सहारा मिल जाने से तेरा घमण्ड बहुत बढ़ गया है। आज रणक्षेत्र में मैं हठ पूर्वक तेरा वध करूँगा और जिसके अन्याय से यह महान संहार हुआ है, उस नराधम दुर्योधन का वध युद्ध में भीमसेन करेंगे।

राजन! ऐसा कहकर महात्मा अर्जुन ने अपने धनुष को पोंछा और कर्ण पुत्र वृषसेन का वध करने के लिये युद्ध में उसी को लक्ष्य बनाकर बाणों का प्रहार आरम्भ किया। किरीटधारी अर्जुन ने हँसते हुए से दस बाणों से उसके मर्मस्थानों में निर्भीक होकर आघात किया। फिर चार तीखे क्षुरों से उसके धनुष को, दोनों भुजाओं को तथा मस्तक को भी काट डाला। अर्जुन के बाणों से आहत हो बाहु और मस्तक से रहित होकर वृषसेन उसी प्रकार रथ से नीचे पृथ्वी पर गिर पड़ा, जैसे सुन्दर फूलों से भरा हुआ श्रेष्ठ एवं विशाल शालवृक्ष हवा के झोंके खाकर पर्वत शिखर से नीचे जा गिरा हो। शीघ्रतापूर्वक कार्य करने वाला सूतपुत्र कर्ण अपने बेटे हो बाणविद्ध हो रथ से नीचे गिरते देख पुत्र के वध से संतप्त हो उठा और रोष में भरकर रथ के द्वारा अर्जुन के रथ की ओर तीव्र वेग से चला। अपने पुत्र को अपनी आँखों के सामने ही युद्ध में श्वेत वाहन अर्जुन द्वारा मारा गया देख महामनस्वी कर्ण को महान क्रोध हुआ तथा उसने श्रीकृष्ण और अर्जुन पर सहसा आक्रमण कर दिया।

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में वृषसेन का वधविषयक पचासीवां अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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