महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 77 श्लोक 55-79

सप्तसप्ततितम (77) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: सप्तसप्ततितम अध्याय: श्लोक 55-79 का हिन्दी अनुवाद


राजन! उस बाण के धराशायी हो जाने पर भीमसेन ने क्रोधपूर्वक हँसते हुए-से एक भल्ल मारकर शकुनि के धनुष को काट दिया। प्रतापी सुबलपुत्र शकुनि ने उस कटे हुए धनुष को फेंककर बड़े वेग से दूसरा धनुष हाथ में ले लिया और उसके द्वारा सोलह भल्ल चलाये। महाराज! झुकी हुई गाँठ वाले उन भल्लों में से दो के द्वारा शकुनि ने भीमसेन के सारथि को और सात से स्वयं भीमसेन को भी घायल कर दिया। प्रजानाथ! फिर सुबलपुत्र ने एक बाण से ध्वज को, दो बाणों से छत्र को और चार बाणों से उनके चारों घोड़ो को भी घायल कर दिया। महाराज! तब क्रोध में भरे हुए प्रतापी भीमसेन ने समरांगण में शकुनि पर सुवर्णमय दण्ड वाली एक लोहे की शक्ति चलायी। भीमसेन के हाथों से छूटी हुई सर्प की जिह्वा के समान वह चंचल शक्ति रणभूमि में तुरंत ही महामना शकुनि पर जा पड़ी। राजन! क्रोध में भरे हुए शकुनि ने उस सुवर्णभूषित शक्ति को हाथ से पकड़ लिया और उसी को भीमसेन पर दे मारा। आकाश से गिरी हुई बिजली के समान वह शक्ति महामनस्वी पाण्डुपुत्र भीमसेन की बायीं भुजा को विदीर्ण करके तत्काल भूमि पर गिर पड़ी।

महाराज! यह देखकर धृतराष्ट्र के पुत्रों ने चारों ओर से गर्जना की; परंतु भीमसेन उन वेगशाली वीरों का वह सिंहनाद नहीं सह सके। राजेन्द्र! महाबली भीम ने बड़ी उतावली के साथ दूसरा धनुष लेकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ायी और युद्ध में अपने जीवन का मोह छोड़कर सुबलपुत्र की सेना को उसी समय बाणों द्वारा ढक दिया। प्रजानाथ! पराक्रमी भीमसेन ने फुर्ती दिखाते हुए शकुनि के चारों घोड़ों और सारथि को मारकर एक भल्ल के द्वारा उसके ध्वज को भी काट दिया। उस समय नरश्रेष्ठ शकुनि उस अश्वहीन रथ को छोड़कर क्रोध से लाल आँखें किये लंबी साँस खीचता और धनुष की टंकार करता हुआ तुरंत भूमि पर खड़ा हो गया। राजन! उस ने अपने बाणों द्वारा भीमसेन पर सब ओर से बारंबार प्रहार किया, किंतु प्रतापी भीमसेन ने बड़े वेग से उसके बाणें को नष्ट करके अत्यन्त कुपित हो उसका धनुष काट डाला और पैने बाणों से उसे घायल कर दिया। बलवान शत्रु के द्वारा अत्यन्त घायल किया हुआ शत्रुसूदन राजा शकुनि तत्काल पृथ्वी पर गिर पड़ा। उस समय उस में जीवन का कुछ-कुछ लक्षण शेष था। प्रजानाथ! उसे विह्बल जानकर आपका पुत्र दुर्योधन रणभूमि में रथ के द्वारा भीमसेन के देखते-देखते अन्यत्र हटा ले गया।

संजय बोले- राजन! पुरुषसिंह भीमसेन रथ पर ही बैठे रहे। उनसे महान भय प्राप्त होने के कारण धृतराष्ट्र के सभी पुत्र युद्ध से मुँह मोड़, डरकर सम्पूर्ण दिशाओं में भाग गये। राजन! धनुर्धर भीमसेन के द्वारा शकुनि के परास्त हो जाने पर आपके पुत्र दुर्योधन को बड़ा भय हुआ। वह मामा के जीवन की रक्षा चाहता हुआ वेगशाली घोड़ों द्वारा वहाँ से भाग निकला। भारत! राजा दुर्योधन को युद्ध से विमुख हुआ देख सारी सेनाएँ सब ओर से द्वैरथ युद्ध छोड़कर भाग चली। धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों को युद्ध से विमुख होकर भागते देख भीमसेन कई सौ बाणों की वर्षा करते हुए बड़े वेग से उन पर टूट पड़े। राजन! समरांगण में भीमसेन की मार खाकर युद्ध से विमुख हुए धृतराष्ट्र के पुत्र सब ओर से कर्ण के पास जाकर खड़े हुए। उस समय महापराक्रमी महाबली कर्ण ही उन भागते हुए कौरवों के लिये द्वीप के समान आश्रयदाता हुआ। पुरुषसिंह! नरेश्वर! जैसे टूटी हुई नौका वाले नाविक कुछ काल के पश्चात किसी द्वीप की शरण लेकर संतुष्ट होते हैं, उसी प्रकार आपके सैनिक कर्ण के पास पहुँचकर परस्‍पर आश्वासन पाकर निर्भय खड़े हुए। फिर मृत्यु को ही युद्ध से निवृत्त होने की सीमा निश्रित करके वे युद्ध के लिये आगे बढ़े।

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में शकुनि की पराजय विषयक सतहत्तरवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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