षट्सप्ततितम (76) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: षट्सप्ततितम अध्याय: श्लोक 26-40 का हिन्दी अनुवाद
ये रथ, घोड़े और हाथी पैदल समूहों को कुचलते हुए भागे जा रहे हैं। प्राय: सभी कौरव अचेत से होकर दावानल के दाह से डरे हुए हाथियों के समान पलायन कर रहे हैं। विशोक! रणभूमि में सब ओर हाहाकार मचा हुआ है। बहुसंख्यक गजराज बड़े जोर-जोर से चीत्कार कर रहे हैं। विशोक ने कहा– 'भीमसेन! क्रोध में भरे हुए अर्जुन के द्वारा खींच जाते हुए गाण्डीव धनुष की यह अत्यन्त भयंकर टंकार क्या आज आपको सुनायी नहीं दे रही है? आपके ये दोनों कान बहरे तो नहीं हो गये हैं? पाण्डुनन्दन! आपकी सारी कामनाएँ सफल हुई। हाथियों की सेना में अर्जुन के रथ की ध्वजा का वह वानर दिखायी दे रहा है। काले मेघ से प्रकट होने वाली बिजली के समान चमकती हुई गाण्डीव धनुष की प्रत्यंचा को देखिये। अर्जुन की ध्वजा के अग्रभाग पर आरूढ़ हो वह वानर सब ओर देखता और युद्धस्थल में शत्रुओं को भयभीत करता है। मैं स्वयं भी देखकर उससे डर रहा हूँ। धनंजय का यह विचित्र मुकुट अत्यन्त प्रकाशित हो रहा है। इस मुकुट में लगी हुई वह दिव्यमणी दिवाकर के समान देदीप्यमान होती है। वीर! अर्जुन के पार्श्वभाग में श्वेत बादल के समान प्रकाशित होने वाला और गंभीर घोष करने वाला देवदत्त नामक भयानक शंख रखा हुआ है, उस पर दृष्टिपात कीजिये। साथ ही हाथों में घोड़ों की बागडोर लिये शत्रुओं की सेना में घुसे जाते हुए भगवान श्रीकृष्ण की बगल में सूर्य के समान प्रकाशमान चक्र विद्यमान हैं, जिसकी नाभि में वज्र और किनारे के भागों में छुरे लगे हुए हैं। भगवान केशव का वह चक्र उनका यश बढ़ाने वाला है। सम्पूर्ण यदुवंशी सदा उसकी पूजा करते हैं। आप उस चक्र को भी देखिये। अर्जुन के छुर नामक बाणों से कटे हुए बड़े-बड़े हाथियों के समान शुण्डदण्ड देवदारू के समान गिर रहे हैं। फिर उन्हीं किरीट के बाणों से छिन्न-भिन्न हो वज्र के मारे हुए पर्वतों के समान वे हाथी सवारों सहित धराशायी हो रहे हैं। कुन्तीनन्दन! भगवान श्रीकृष्ण के इस बहुमूल्य पांचजन्य शंख को, जो चन्द्रमा के समान श्वेतवर्ण है, देखिये। साथ ही उनके वक्ष:स्थल पर अपनी प्रभा से प्रज्जवलित होने वाली कौस्तुभमणि तथा वैजयन्ती माला पर भी दृष्टिपात कीजिये। निश्चय ही रथियों में श्रेष्ठ कुन्तीनन्दन अर्जुन शत्रुओं की सेना को खदेड़ते हुए इधर ही आ रहे हैं। सफेद बादलों के समान श्वेतकान्ति वाले उनके महामूल्यवान अश्व श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण द्वारा संचालित हो रहे हैं। देखिये, जैसे गरुड़ के पंख से उठी हुई वायु के द्वारा बड़े-बड़े़ जंगल धराशायी हो जाते हैं, उसी प्रकार देवराज इन्द्र के तुल्य तेजस्वी आपके छोटे भाई अर्जुन बाणों द्वारा शत्रुओं के रथों, घोड़ों और पैदल समूहों को विदीर्ण कर रहे हैं और वे सब के सब पृथ्वी पर गिरते जा रहे हैं। वह देखिये, किरीटधारी अर्जुन ने समरांगण में सारथि और घोड़ों सहित इन चार सौ रथियों को मार डाला तथा अपने विशाल बाणों द्वारा सात सौ हाथियों, बहुत से पैदलों, घुड़सवारों और रथों का संहार कर डाला। विचित्र ग्रह के समान ये बलवान अर्जुन कौरवों का संहार करते हुए आपके निकट आ रहे हैं। अब आपकी कामना सफल हुई। आपके शत्रु मारे गये। इस समय चिरकाल के लिये आपका बल और आयु बढे़'। भीमसेन ने कहा– 'विशोक! तुम अर्जुन के आने का समाचार सुना रहे हो। सारथे! इस प्रिय संवाद से मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है; अत: मैं तुम्हें चौदह बडे़-बड़े गाँव की जागीर देता हूँ। साथ ही सौ दासियाँ तथा बीस रथ तुम्हें पारितोषिक के रूप में प्राप्त होंगे'। इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में भीमसेन और विशोक का संवाद विषयक छिहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज