महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 76 श्लोक 15-25

एकषष्टितम (61) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: षट्सप्ततितम अध्याय: श्लोक 15-25 का हिन्दी अनुवाद

सूत! तुम मेरे रथ पर रखे हुए बाणों के सारे तरकसों की देखभाल करके ठीक-ठीक समझकर मुझे स्पष्ट रूप से बताओ कि अब उनमें कितने बाण अवशिष्ट रह गये हैं? किस-किस जाति के बाण बचे हैं और उनकी संख्या कितनी है? सारथे! शीघ्र बताओ, कौन बाण कितने हजार और कितने सौ शेष हैं'? विशोक ने कहा– 'वीर! मैं आज सब कुछ पता लगा कर आपके मनोरथ की सिद्धि करने वाली बात बता रहा हूँ, कैकेय, काम्बोज, सौराष्ट्र, बाह्लिक, म्लेच्छ, सुह्म, परतंगण, मद्र, वंग, मगध, कुलिन्द, आनर्त, आवर्त और पर्वतीय सभी योद्धा हाथों में श्रेष्ठ आयुध लिये आपको चारों ओर से घेरकर युद्धस्थल में शत्रुओं का सामना करने के लिये गरज रहे हैं। वीरवर! अभी अपने पास साठ हजार मार्गण हैं, दस-दस हजार क्षुर और मल्ल हैं, दो हजार नारच शेष हैं तथा पार्थ! तीन हजार प्रदर बाकी रह गये हैं।

पाण्डुनन्दन! अभी इतने आयुध शेष हैं कि छ: बैलों से जुता हुआ छकड़ा भी उन्हें नहीं खींच सकता। विद्वन! इन सहस्रों अस्त्रों का आप प्रयोग कीजिये। अभी तो आपके पास बहुत यी गदाएँ, तलवारें और बाहुबल की सम्पत्ति हैं। इसी प्रकार बहुतेरे प्रास, मुद्गर, शक्ति और तोमर बाकी बचे हैं। आप इन आयुधों के समाप्त हो जाने के डर में न रहिये'।

भीमसेन बोले– 'सूत! आज इस युद्धस्थल की ओर दृष्टिपात करो। भीमसेन के छोड़े हुए अत्यन्ती वेगशाली बाणों ने राजाओं का विनाश करते हुए सारे रणक्षेत्र को आच्छादित कर दिया है, जिससे सूर्य भी अदृश्य हो गये हैं और यह भूमि यमलोक के समान भयंकर प्रतीत होती है। सूत! आज बच्चों से लेकर बूढ़ों तक समस्त भूपालों को यह विदित हो जायेगा कि भीमसेन समरसागर में डूब गये अथवा उन्होंने अकेले ही समस्त कौरवों को युद्ध में जीत लिया। आज युद्धस्थल में समस्त कौरव धराशायी हो जायँ अथवा बालकों से लेकर वृद्धों तक सब लोग मुझ भीमसेन को ही रणभूमि में ‍गिरा हुआ बतावें! मैं अकेला ही उन समस्त कौरवों को मार गिराऊँगा अथवा वे ही सब लोग मुझ भीमसेन को पीड़ित करें। जो उत्तम कर्मों का उपदेश देने वाले हैं, वे देवता लोग मेरा केवल एक कार्य सिद्ध कर दें। जैसे यज्ञ में आवाहन करने पर इन्द्र देव तुरंत पदार्पण करते हैं, उसी प्रकार शत्रुघाती अर्जुन यहाँ शीघ्र ही आ पहुँचे।

विशोक! देखो, देखो, मेरा बल। मेरे आघातों से शत्रुओं की सेना विदीर्ण हो उठी हैं। देखो, धृतराष्ट्र के सभी बलवान पुत्र नाना प्रकार के आर्तनाद करते हुए भागने लगे हैं। सारथे! इस कौरव सेना पर तो दृष्टिपात करो। इसमें भी दरार पड़ती जा रही हैं। ये राजा लोग क्यों भाग रहे हैं? इससे तो स्पष्ट जान पड़ता है कि बुद्धिमान नरश्रेष्ठ अर्जुन आ गये। वे ही अपने बाणों द्वारा शीघ्रतापूर्वक इस सेना को आच्छादित कर रहें है। विशोक! युद्धस्थल में भागते हुए रथों की ध्वजाओं, हाथियों, घोड़ों और पैदल समूहों को देखो। सूत! बाणों और शक्तियों से प्रताड़ित होकर बिखरे पड़े हुए इन रथों और रथियों पर भी दृष्टिपात करो। अर्जुन के बाण वज्र के समान वेगशाली हैं। उनमें सोने और मयूरपिच्छ के पंख लगे हैं। उन बाणों द्वारा आक्रान्त हुई वह कौरव सेना अत्यन्त मार पड़ने के कारण बारंबार आर्तनाद कर रही है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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