सप्ततितम (70) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: सप्ततितम अध्याय: श्लोक 12-21 का हिन्दी अनुवाद
नरदेव! तेरा प्रिय करने के लिये सत्यप्रतिज्ञ भीष्म जी ने युद्ध में महामनस्वी वीर द्रुपदकुमार शिखण्डी को अपनी मृत्यु बताया था। मेरे ही द्वारा सुरक्षित होकर शिखण्डी ने उन्हें मारा है। मैं तेरे राज्य का अभिनन्दन नहीं करता; क्योंकि तू अपना ही अहित करने के लिये जूए में आसक्त है। स्वयं नीच पुरुषों द्वारा सेवित पापकर्म करके सब तू हम लोगों के द्वारा शत्रुसेना रुपी समुद्र को पार करना चाहते है। जूआ खेलने में बहुत से पापमय दोष बताये गये हैं, जिन्हें सहदेव ने तुझ से कहा था और तूने सुना भी था, तो भी तू उन दुर्जनसेवित दोषों का परित्याग न कर सका; इसी से हम सब लोग नरकतुल्य कष्ट में पड़ गये। पाण्डुकुमार! तुझसे थोड़ा सा भी सुख मिला हो यह हम नहीं जानते हैं; क्योंकि तू जूआ खेलने के व्यसन में पड़ा हुआ है। स्वयं यह दुर्व्यसन करके अब तू हमें कठोर बातें सुना रहा है। हमारे द्वारा मारी गयी शत्रुओं की सेना अपने कटे हुए अंगों के साथ पृथ्वी पर पड़ी-पड़ी कराह रही है। तूने वह क्रूरतापूर्ण कर्म कर डाला है, जिससे पाप तो होगा ही; कौरव वंश का विनाश भी हो जायगा। उत्तर दिशा के वीर मारे गये, पश्चिम के योद्धाओं का संहार हो गया, पूर्वदेश के क्षत्रिय नष्ट हो गये और दक्षिण देशीय योद्धा काट डाले गये। शत्रुओं के और हमारे पक्ष के बड़े-बड़े योद्धाओं ने युद्ध में ऐसा पराक्रम किया है, जिसकी कहीं तुलना नहीं है। नरेन्द्र! तू भाग्यहीन जुआरी है। तेरे ही कारण हमारे राज्य का नाश हुआ और तुझसे ही हमें घोर संकट की प्राप्ति हुई। राजन! अब तू अपने वचनरुपी चाबुकों से हमें पीड़ा देते हुए फिर कुपित न कर।' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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