महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 68 श्लोक 22-30

अष्‍टषष्टितम (68) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: अष्‍टषष्टितम अध्याय: श्लोक 22-30 का हिन्दी अनुवाद

भीमसेन का वह पुत्र समरभूमि में आगे चलने वाला, महान अस्त्रवेत्ता और तुम्‍हारे समान ही पराक्रमी था। उसके होने पर हमारे शत्रुओं की सेना यत्न करके भी सफल न होती और भय से व्‍याकुल होकर आंखें बंद कर लेती। उस महानुभाव वीर ने अकेले ही रात्रि में युद्ध किया था, जिससे शत्रुसैनिक भय से मारे रणभूमि छोड़कर भागने लगे थे। उसने कर्ण पर आक्रमण करके रणभूमि में अपने बाण समूहों द्वारा सबको मोह में में डाल दिया था; परंतु धैर्य में स्थित हुए सूतपुत्र कर्ण ने इन्द्र की दी हुई उस शक्ति के द्वारा उसे मार डाला। निश्चय ही मेरे अभाग्‍य और पूर्वकृत पाप इस युद्ध में प्रबल हो रहे हैं।

दुरात्‍मा कर्ण ने संग्राम में तुम्‍हें तिनके के समान समझकर मेरा ऐसा अपमान किया है। किसी शक्तिहीन तथा बन्‍धु-बान्‍धवों से रहित असहाय मनुष्‍य के सा‍थ जैसा बर्ताव किया जाता है, कर्ण ने वैसा ही मेरे साथ किया है। जो कोई पुरुष आपति में पड़े हुए मनुष्‍य को संकट से छुड़ा देता है, वही बन्‍धु है और वही स्‍नेही सुदृढ़। प्राचीन महर्षि ऐसा ही कहते हैं। यही सत्‍पुरुषों द्वारा सदा से पालित होने वाला धर्म है। कुन्‍तीनन्‍दन! तुम्‍हारा रथ साक्षात विश्वकर्मा का बनाया हुआ है, उसके धुरे से कोई आवाज नहीं होती। उस पर वानरध्‍वजा फहराती रहती है, ऐसे शुभलक्षण रथ पर आरुढ़ हो सुवर्णजटित खंड और चार हाथ के श्रेष्ठ धनुष गाण्डीव को लेकर तथा भगवान श्रीकृष्‍ण जैसे सारथि के द्वारा संचालित होकर भी तुम कर्ण से भयभीत होकर कैसे भाग आये। तुम अपना गाण्‍डीव धनुष भगवान श्रीकृष्‍ण को दे दो तथा रणभूमि में स्‍वयं इनके सारथि बन जाओ। फिर जैसे इन्‍द्र ने हाथ में वज्र लेकर वृत्रासुर का वध किया था, उसी प्रकार ये श्रीकृष्‍ण भयंकर वीर कर्ण को मार डालेंगे।

यदि तुम आज रणभूमि में विचरते हुए इस भयानक वीर राधापुत्र कर्ण का सामना करने की शक्ति नहीं रखते तो अब यह गाण्‍डीव धनुष दूसरे किसी ऐसे राजा को दे दो, जो अस्त्र-बल में तुमसे बढ़कर हो। पाण्‍डुनन्‍दन! ऐसा हो जाने पर संसार के मनुष्‍य हमें फिर इस प्रकार स्‍त्री-पुत्रों के संयोग से रहित, राज्‍य नष्‍ट होने के कारण सुख से वंचित तथा पापियों द्वारा सेवित अगाध नरक-तुल्‍य कष्‍ट में गिरा हुआ नहीं देखेंगे। दुरात्‍मा राजपुत्र! यदि तुम पांचवें महीने में माता के गर्भ से गिर गये होते अथवा माता कुन्‍ती के अष्‍टदायक गर्भ में आये ही नहीं होते तो वह तुम्‍हारे लिये अच्‍छा होता; क्‍योंकि उस दशा में तुम्‍हें युद्ध से भाग आने का कलंक तो नहीं प्राप्‍त होता। धिक्‍कार है तुम्‍हारे इस गाण्‍डीव धनुष को, धिक्‍कार है तुम्‍हारी भुजाओं के पराक्रम को, धिक्‍कार है तुम्‍हारे इन असंख्‍य बाणों को, धिक्‍कार है हनुमान जी के द्वारा उपलक्षित तुम्‍हारी इस ध्‍वजा को तथा धिक्‍कार है अग्रिदेव के दिये हुए इस रथ को’।

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में युधिष्ठिर क्रोधपूर्ण वचनविषयक अड़सठवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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