एकषष्टितम (61) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: एकषष्टितम अध्याय: श्लोक 21-45 का हिन्दी अनुवाद
उस अश्वहीन रथ से कूदकर कुपित हुए शत्रुसंतापी महारथी शिखण्डी ने कर्ण पर शक्ति चलायी। भारत! समरांगण में तीन बाणों द्वारा उस शक्ति को काट कर कर्ण ने नौ बाण से शिखण्डी को भी घायल कर दिया। तब अत्यन्त घायल हुआ नरश्रेष्ठ शिखण्डी कर्ण के धनुष से छूटे हुए बाणों से बचने के लिये तुरंत वहाँ से भाग निकला। तदनन्तर महाबली कर्ण रुई के ढेर को वायु की भाँति पाण्डव-सेनाओं को तहस-नहस करने लगा। राजेन्द्र! आपके पुत्र दु:शासन से पीड़ित हो धृष्टद्युम्न ने तीन बाणों से उसकी छाती मे गहरी चोट पहुँचायी। आर्य! दु:शासन ने भी उसकी बायीं भुजाओं को बींध डाला। भारत! सुनहरे पंख और झुकी हुई गांठवाले भल्ल से घायल हुए अमर्षशील धृष्टद्युम्न अत्यन्त कुपित हो दु:शासन पर एक भयंकर बाण चलाया। प्रजानाथ! धृष्टद्युम्न के चलाये हुए उस भयंकर वेगशाली बाण को अपनी ओर आते देख आपके पुत्र ने तीन ही बाणों द्वारा उसे काट डाला तत्पश्चात धृष्टद्युम्न के पास पहुँचकर उसने सुवर्ण-भूषित दूसरे सत्रह भल्लों से उसकी दोनों भुजाओं और छाती में प्रहार किया। आर्य! तब कुपित हुए द्रुपद कुमार ने अत्यन्त तीखे क्षुरप्र से दु:शासन के धनुष को काट दिया। यह देख सब लोग कोलाहल कर उठे। तदनन्तर आपके पुत्र ने हंसते हुए से दूसरा धनुष हाथ में लेकर अपने बाण समूहों द्वारा धृष्टद्युम्न को सब ओर से अवरुद्ध कर दिया। आपके महामनस्वी पुत्र का वह पराक्रम देखकर रणभूमि में सब योद्धा विस्मित हो गये तथा आकाश में सिद्धों और अप्सराओं के समूह भी आश्चर्य करने लगे। जैसे सिंह किसी महान गजराज को काबू में कर ले, उसी प्रकार दु:शासन से अवरुद्ध हो यथाशक्ति छूटने की चेष्टा करने वाले महाबली धृष्टद्युम्न को हम देख नही पाते थे। पाण्डु के ज्येष्ठ भ्राता राजन! तब सेनापति धृष्टद्युम्न की रक्षा के लिये रथों, हाथियों और घोड़ों सहित पांचालों ने आपके पुत्र को चारों ओर से घेर लिया। परंतप! फिर तो उस समय शत्रुओं के साथ आपके सैनिकों का घोर युद्ध होने लगा, जो समस्त प्राणियों के लिये भयंकर था। अपने पिता के पास खड़े हुए वृषसेन ने लोहे के पांच बाणों से नकुल को घायल करके दूसरे तीन बाणों द्वारा पुन: बींध डाला। तब शूरवीर नकुल ने हंसते हुए से अत्यन्त तीखे नाराच द्वारा वृषसेन की छाती में गहरा आघात किया। शत्रुसूदन! बलवान शत्रु के द्वारा अत्यन्त घायल हुए वृषसेन ने अपने वैरी नकुल को बीस बाणों से बींध डाला फिर नकुल ने भी उसे पांच बाणों से घायल कर दिया। तदनन्तर उन दोनों नरश्रेष्ठ वीरों ने सहस्त्रों बाणों द्वारा एक दूसरे को आच्छादित कर दिया। इसी समय कौरव सेना में भगदड़ मच गयी। प्रजानाथ! दुर्योधन की सेना को भागती देख सूतपुत्र कर्ण ने बलपूर्वक पीछा करके उसे रोका। आर्य! कर्ण के लौट जाने पर नकुल कौरव-सैनिकों की ओर बढ़ चले और कर्ण का पुत्र नकुल को छोड़कर समरभूमि में शीघ्रता पूर्वक राधापुत्र कर्ण के पहियों की ही रक्षा करने लगा। राजन! उसी प्रकार रणभूमि में कुपित हुए उलूक को सहदेव ने रोक दिया। प्रतापी सहदेव ने उलूक के चारों घोड़ों को मारकर उसके सारथि को भी यमलोक भेज दिया। प्रजानाथ! तदनन्तर पिता को आनन्द देने वाला उलूक उस रथ से कूदकर तुरंत ही त्रिगर्तों की सेना में चला गया। सात्यकि ने बीस पैने बाणों से शकुनि को घायल करके हंसते हुए से एक भल्ल द्वारा सुबलपुत्र के ध्वज को भी काट दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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