महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 56 श्लोक 21-45

षट्पंचाशत्तम (56) अध्याय: कर्ण पर्व

Prev.png

महाभारत: कर्ण पर्व: षट्पंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 21-45 का हिन्दी अनुवाद

तदनन्‍तर अमेय आत्‍मबल से सम्‍पन्न आपके अमर्षशील पुत्र ने पैंसठ बाणों से धृष्टद्युम्न को घायल करके बड़े जोर से गर्जना की। आर्य! फिर राजा दुर्योधन ने युद्धस्‍थल में एक तीखे क्षुरप्र से धृष्टद्युम्न के बाणसहित धनुष और दस्‍ताने को भी काट दिया। शत्रुसूदन धृष्टद्युम्न ने उस कटे हुए धनुष को फेंककर वेगपूर्वक दूसरा धनुष हाथ में ले लिया, जो भार सहने में समर्थ और नवीन था। उस समय उनकी आंखें क्रोध से लाल हो रही थी। सारे शरीर में घाव हो रहे थे; अत: वे महाधनुर्धर धृष्टद्युम्न वेग से जलते हुए अग्नि देव के समान शोभा पा रहे थे। धृष्टद्युम्न ने भरतश्रेष्‍ठ दुर्योधन को मार डालने की इच्‍छा से उसके ऊपर फुफकारते हुए सर्पों के समान पंद्रह नाराच छोड़े। शिला पर तेज किये हुए कंकड और मयूर के पंखों से युक्त वे बाण राजा दुर्योधन के सुवर्णमय कवच को छेदकर बड़े वेग से पृथ्‍वी में समा गये। महाराज! उस समय अत्‍यन्‍त घायल हुआ आपका पुत्र वसन्त ऋतु में खिले हुए महान पलाश वृक्ष के समान अत्‍यन्‍त सुशोभित हो रहा था। उसका कवच कट गया था और शरीर नाराचों के प्रहार से जर्जर कर दिया गया था। उस अवस्‍था में उसने कुपित होकर एक भल्ल से धृष्टद्युम्न के धनुष को काट डाला।

राजन! धनुष कट जाने पर धृष्टद्युम्न की दोनों भौहों के साथ मध्‍य भाग में राजा दुर्योधन ने तुरंत ही दस बाणों का प्रहार किया। कारीगर के द्वारा साफ किये गये वे बाण धृष्टद्युम्न के मुख की ऐसी शोभा बढ़ाने लगे, मानो मधुलो भी भ्रमर प्रफुल्‍ल कमल-पुष्‍प का रसास्‍वादन कर रहे हों। महामना धृष्टद्युम्न ने उस कटे हुए धनुष को फेंककर बड़े वेग से दूसरे धनुष और सोलह भल्‍ल हाथ में ले लिये। उनमें पांच भल्‍लों द्वारा दुर्योधन के सारथि और घोड़ों को मारकर एक भल्‍ल से उसके सुवर्ण-भूषित धनुष को काट डाला। तत्‍पश्चात दस भल्‍लों से द्रुपदकुमार ने आपके पुत्र के सब सामग्रियों सहित रथ, छत्र, शक्ति, खड्ग, गदा और ध्‍वज का‍ट दिये। समस्‍त राजाओं ने देखा कि कुरुराज दुर्योधन का सोने के अंगदों से विभूषित नाग-चिह्न युक्त विचित्र, मणिमय एवं सुन्‍दर ध्‍वज कटकर धराशायी हो गया है। भरतश्रेष्ठ! रणभूमि में जिसके कवच और आयुध छिन्न भिन्न हो गये थे, उस रथहीन दुर्योधन की उसके सगे भाई सब ओर से रक्षा करने लगे। राजन! इसी समय दण्‍डधार धृष्टद्युम्न के देखते-देखते राजा दुर्योधन को अपने रथ पर बिठाकर बिना किसी घबराहट के रणभूमि से दूर हटा ले गया। राजा दुर्योधन का हित चाहने वाला महाबली कर्ण सात्यकि को परास्‍त करके रणभूमि में भयंकर बाण धारण करने वाले द्रोणहन्‍ता धृष्टद्युम्न के सामने गया।

उस समय शिनिपौत्र सात्‍यकि अपने बाणों से कर्ण को पीड़ा देते हुए तुरंत उसके पीछे-पीछे गये, मानो कोई गजराज अपने दोनों दांतों से दूसरे गजराज की जांघों में चोट पहुँचाता हुआ उसका पीछा कर रहा था। भारत! कर्ण और धृष्टद्युम्न के बीच में खड़े हुए आपके महामनस्वी योद्धाओं का पाण्‍डव सैनिकों के साथ महान संग्राम हुआ। उस समय पाण्‍डवों तथा हम लोगों में से कोई भी योद्धा युद्ध से मुंह फेर कर पीछे हटता नहीं दिखायी दिया। तब कर्ण ने तुरंत ही पांचालों पर आक्रमण किया। नरश्रेष्ठ नरेश्वर! मध्‍याह्न की वेला में दोनों पक्षों के हाथी, घोड़ों और मनुष्‍यों का संहार होने लगा। महाराज! विजय की इच्‍छा रखने वाले समस्‍त पांचाल योद्धा कर्ण पर उसी प्रकार टूट पड़े, जैसे पक्षी वृक्ष की ओर उड़े जाते हैं। अधिरथपुत्र कर्ण कुपित हो विजय के लिये प्रयत्नशील, मनस्‍वी एवं अग्रगामी वीरों को मानो चुन-चुनकर बाण- समूहों द्वारा मारने लगा। वह व्‍याघ्रकेतु, सुशर्मा[1], चित्र, उग्रायुध, जय, शुक्ल, रोचमान और दुर्जय वीर सिंहसेन पर जा चढ़ा। उन सभी वीरों ने रथ-मार्ग से आकर युद्धभूमि में शोभा पाने तथा कुपित होकर बाणों की वर्षा करने वाले नरश्रेष्ठ कर्ण को चारों ओर से घेर लिया।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संशप्तकों के सेनापति त्रिगर्तराज सुशर्मा कौरवों के पक्ष में था। यह सुशर्मा उससे भिन्न पाण्डव-पक्ष का योद्धा था।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः