महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 51 श्लोक 23-44

एकपंचाशत्तम (51) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: एकपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 23-44 का हिन्दी अनुवाद

राजेन्द्र! वे दोनों महारथी जब परस्पर भिड़ गये, उस समय वह देखकर मेरे मन में यह विचार उठने लगा कि न जाने यह युद्ध कैसा होगा। महाराज! तदनन्तर युद्ध का हौसला रखने वाले भीमसेन ने अपने बाणों से आपके पुत्रों के देखते-देखते कर्ण को आच्छादित कर दिया। तब उत्तम अस्त्रों के ज्ञाता कर्ण ने अत्यन्त‍ कुपित हो लोहे के बने हुए और झुकी हुई गांठ वाले नौ भल्लों से भीमसेन को घायल कर दिया। उन भल्लों से आहत हो भयंकर पराक्रमी महाबाहु भीमसेन ने कर्ण को भी कान तक खींचकर छोड़े गये सात बाणों से पीट दिया। महाराज! तब विषधर सर्प के समान फुफकारते हुए कर्ण ने बाणों की भारी वर्षा करके पाण्डुपुत्र भीमसेन को आच्छादित कर दिया। महाबली भीमसेन ने भी कौरववीरों के देखते देखते महारथी कर्ण को बाणसमूहों से आच्छातदित करके विकट गर्जना की। तब कर्ण ने अत्यतन्त कुपित हो सुदृढ़ धनुष हाथ में लेकर सान पर चढ़ाकर तेज किये हुए कंकपत्रयुक्त दस बाणों द्वारा भीमसेन को घायल कर दिया। साथ ही एक तीखे भल्ल से उनके धनुष को भी काट डाला। तब अत्यन्त बलवान महाबाहु भीमसेन ने कर्ण के वध की इच्छा से द्वितीय मृत्युदण्ड के समान एक भयंकर स्वर्णपत्र जटित परिघ हाथ में ले उसे गरजकर कर्ण पर दे मारा। वज्र और बिजली के समान गड़गड़ाहट पैदा करने वाले उस परिघ को अपने ऊपर आते देख कर्ण ने विषधर सर्प के समान भयंकर बाणों द्वारा उसके बहुत से टुकड़े कर डाले।

तत्पश्चात भीमसेन ने अत्यन्त सुदृढ़ धनुष हाथ में लेकर अपने बाणों द्वारा शत्रु सैन्यसंतापी कर्ण को आच्छानदित कर दिया। फिर तो एक दूसरे के वध की इच्छा वाले दो सिंहों के समान कर्ण और भीमसेन में वहाँ अत्यन्त भयंकर युद्ध होने लगा। महाराज! उस समय कर्ण ने अपने सुदृढ़ धनुष को कान के पास तक खींचकर तीन बाणों से भीमसेन को क्षत-विक्षत कर दिया। कर्ण के द्वारा अत्यनन्त घायल होकर बलवानों में श्रेष्ठ महाधनुर्धर भीमसेन ने एक भयंकर बाण हाथ में लिया, जो कर्ण के शरीर को विदीर्ण करने में समर्थ था। राजन। जैसे सांप बांबी में घुस जाता है, उसी प्रकार वह बाण कर्ण के कवच और शरीर को छेदकर धरती में समा गया। उस प्रबल प्रहार से व्यथित और विह्वल-सा होकर कर्ण रथ पर ही कांपने लगा। ठीक उसी तरह, जैसे भूकम्प के समय पर्वत हिलने लगता है। महाराज! तब रोष और अमर्ष में भरे हुए कर्ण ने पाण्डुपुत्र भीमसेन पर पच्चीस नाराचों का प्रहार किया। साथ ही अन्य बहुत से बाणों द्वारा उन्हें घायल कर दिया और एक बाण से उनकी ध्वजा काट डाली। राजेन्द्र! फिर एक भल्ल से उनके सारथि को यमलोक भेज दिया और तुरंत ही एक बाण से उनके धनुष को भी काटकर बिना विशेष कष्ट के ही मुहूर्त भर में हंसते हुए से कर्ण ने भयंकर पराक्रमी भीमसेन को रथहीन कर दिया। भरतश्रेष्ठ! रथहीन होने पर वायु के समान बलशाली महाबाहु भीमसेन गदा हाथ में लेकर हंसते हुए उस उत्तम रथ से कूद पड़े। प्रजानाथ! जैसे वायु शरत्काल के बादलों को शीघ्र ही उड़ा देती है, उसी प्रकार भीमसेन ने बड़े वेग से कूदकर अपनी गदा की चोट से आपकी सेना का विध्वंस आरम्भ किया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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