महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 50 श्लोक 45-49

पंचाशत्तम (50) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: पंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 45-49 का हिन्दी अनुवाद

फिर हनुमान जी भी अधिक पराक्रम प्रकट करने वाले महाधनुर्धर भीमसेन ने धनुष को जोर-जोर से कान तक खींचकर कर्ण को मार डालने की इच्छा से उस बाण को क्रोध पूर्वक छोड़ दिया। बलवान भीमसेन के हाथ से छूटकर वज्र और विद्युत के समान शब्द करने वाले उस बाण ने रणभूमि में कर्ण को चीर डाला, मानो वज्र के वेग ने पर्वत को विदीर्ण कर दिया हो। कुरुश्रेष्ठ! भीमसेन की गहरी चोट खाकर सेनापति सूतपुत्र कर्ण अचेत हो रथ की बैठक में धम्म से बैठ गया। उसका सारा शरीर रक्त से सिंच गया। शत्रुओं का दमन करने वाला वह वीर प्राणहीन सा हो गया था। इसी समय भीमसेन को कर्ण की जीभ काटने के लिये आते देख मद्रराज शल्य ने उन्हें सान्वना देते हुए इस प्रकार कहा- शल्य बोले- महाबाहु भीमसेन! मैं तुमसे जो युक्ति युक्त वचन कह रहा हूं, उसे सुनो और सुनकर उसका पालन करो। अर्जुन ने पराक्रमी कर्ण के वध की प्रतिज्ञा की है। तुम्हारा कल्याण हो। तुम सव्यसाची अर्जुन के उस प्रतिज्ञा को सफल करो।

भीमसेन ने कहा- नृपश्रेष्ठर! मैं अर्जुन की दृढ़ प्रतिज्ञ को जानता हूं; परंतु इस पापी कर्ण ने मेरे समीप ही राजा युधिष्ठिर का तिरस्कार किया है, अत: क्रोध के वशीभूत होकर मैंने और किसी बात की परवा नहीं की है। यद्यपि राधापुत्र कर्ण गिर गया है तो भी मेरा क्रोध अभी शान्त नहीं हुआ है। मैं तो इस समय इसकी जीभ खींच लेना ही उचित समझता हूँ। मामाजी! इस नीच नृशंस ने जहाँ बहुत-से राजा एकत्र हुए थे, वहाँ हमारे सुनते हुए द्रौपदी के प्रति बहुत से असह्य कटुवचन सुनाये थे। राजन! आप दूर होने पर भी निश्चय ही यह समझ गये हैं कि मेरे द्वारा इसकी जीभ काटी जाने वाली है। वास्तव में इस समय मैंने इसकी जीभ काटने की ही इच्छा की थी। केवल राजा युधिष्ठिर का प्रिय करने के लिये मैंने आज तक प्रतीक्षा की है। महाराज! अपने जो युक्तियुक्त बात मुझसे कही है, उसे कड़वी दवा के समान मैंने ग्रहण कर लिया है। क्योंकि यदि अर्जुन की प्रतिज्ञा भंग हो जायगी तो वे कभी जीवित नहीं रह सकेंगे। उनके नष्ट होने पर श्रीकृष्ण सहित हम सब लोग भी नष्ट ही हो जायंगे। आज किरीटधारी अर्जुन की दृष्टि पड़ते ही पापाचारियों में श्रेष्ठ पापात्मा क्रूर कर्ण पराभव को प्राप्त हो जायगा। यह नृशंस कर्ण महाराज युधिष्ठिर के क्रोध से पहले ही दग्ध हो चुका था। आज आपने उचित उपाय द्वारा मेरे निकट से इसकी रक्षा कर ली है।

तदनन्तर मद्रराज शल्य संग्राम में शोभा पाने वाले सूतपुत्र कर्ण को अचेत हुआ देख रथ के द्वारा युद्धस्थल से दूर हटा ले गये। कर्ण के पराजित हो जाने पर भीमसेन दुर्योधन की विशाल सेना को पुन: खदेड़ने लगे। ठीक वैसे ही, जैसे पूर्वकाल में इन्द्र ने दानवों को मार भगाया था।

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में कर्ण का पलायन विषयक पचासवां अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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