महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 48 श्लोक 22-40

अष्टचत्वारिंश (48) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: अष्टचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 22-40 का हिन्दी अनुवाद

जैसे वर्षा ऋतु में बादल पर्वत पर जल की धारा गिराते हैं, उसी प्रकार उन पाण्डव वीरों ने अपनी सेना का मर्दन करने वाले कर्ण पर नाना प्रकार के अस्त्र शस्त्रों और बाण धाराओं की वृष्टि की। राजन! उस समय अपने पिता की रक्षा चाहने वाले प्रहार कुशल कर्ण पुत्र तथा आपकी सेना के दूसरे-दूसरे वीर पुर्वोंक्त पाण्डव वीरों का निवारण करने लगे। सुषेण ने एक भल्ल से भीमसेन के धनुष को काटकर उनकी छाती में सात नाराचों का प्रहार करके भंयकर गर्जना की। तदनन्तर भीषण पराक्रम प्रकट करने वाले भीमसेन ने दूसरा सुदृढ़ धनुष लेकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ायी और सुषेण के धनुष को काट डाला। साथ ही कुपित हो नृत्य से करते हुए भीमसेन ने दस बाणों द्वारा उसे घायल कर दिया और तिहत्तर पैने बाणों से तुरंत ही कर्ण को भी पीट दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने हितैषी सुहृदों के बीच में उनके देखते-देखते कर्ण के पुत्र भानुसेन को दस बाणों से घोड़े, सारथि, आयुध और ध्वजों सहित मार गिराया। भीमसेन के क्षुर से कटा हुआ चन्द्रोपम मुख से युक्त भानुसेन का वह मस्तक नाल से काटकर गिरे हुए कमल पुष्प के समान सुन्दर ही दिखायी दे रहा था।

कर्ण के पुत्र का वध करके भीमसेन ने पुन: आपके सैनिकों का मर्दन आरम्भ किया। कृपाचार्य और कृतवर्मा के धनुषों को काटकर उन दोनों को भी गहरी चोट पहुँचायी। तीन बाणों से दु:शासन को और छ: लोहे के बाणों से शकुनि को भी घायल करके उलूक और पतत्रि दोनों वीरों को रथहीन कर दिया। फिर सुषेण से यह कहते हुए बाण हाथ में लिया कि ‘अब तू मारा गया’। किंतु कर्ण ने भीमसेन के उस बाण को काट डाला और तीन बाणों से उन्हें भी घायल कर दिया। तब भीमसेन ने सुन्दर गांठ और तेज धारवाले दूसरे बाण को हाथ में लिया और उसे सुषेण पर चला दिया किंतु कर्ण ने उसको भी काट डाला। फिर पुत्र के प्राण बचाने की इच्छा से कर्ण ने क्रूर भीमसेन को मार डालने की अभिलाषा लेकर उन पर तिहत्तर बाणों का प्रहार किया।

तब सुषेण ने महान भार को सहलेने वाले श्रेष्ठ धनुष को हाथ में लेकर नकुल की दोनों भुजाओं और छाती में पांच बाणों का प्रहार किया। नकुल ने भी भार सहन करने में समर्थ बीस सुदृढ़ बाणों द्वारा सुषेण को घायल करके कर्ण के मन में भय उत्पन्न करते हुए बड़े जोर से गर्जना की। महाराज! महारथी सुषेण ने दस बाणों से नकुल को चोट पहुँचाकर शीघ्र ही एक क्षुरप्र के द्वारा उनका धनुष काट दिया। तब क्रोध से अचेत-से होकर नकुल ने दूसरा धनुष हाथ में लिया और सुषेण को नौ बाण मारकर उसे युद्धस्थल में आगे बढ़ने से रोक दिया। राजन! शत्रुवीरों का संहार करने वाले नकुल ने अपने बाणों से सम्पूर्ण दिशाओं को आच्छादित करके फिर तीन बाणों से सुषेण और उसके सारथि को भी घायल कर दिया। साथ ही तीन भल्ल मारकर उसके सुदृढ़ धनुष के तीन टुकड़े कर डाले। तब क्रोध से मूर्च्छित हुए सुषेण ने दूसरा धनुष लेकर नकुल को साठ और सहदेव को सात बाणों से घायल कर दिया। बाणों द्वारा शीघ्रता पूर्वक एक दूसरे के वध के लिये चोट करते हुए वीरों का वह महान युद्ध देवासुर-संग्राम के समान भयंकर जान पड़ता था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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