महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 36 श्लोक 20-33

षट्-त्रिंश (36) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: षट्-त्रिंश अध्याय: श्लोक 20-33 का हिन्दी अनुवाद

राधानन्दन! या तो तुम धर्मराज युधिष्ठिर को कैद कर लो या अर्जुन को, भीमसेन तथा माद्रीकुमार नकुल-सहदेव को मार डालो। पुरुषश्रेष्ठ! तुम्हारी जय हो। कल्याण हो। अब तुम जाओ और पाण्डपुत्र की सारी सेनाओं को भस्म करो'। तदननतर सहस्रों सूर्य और कई सहस्र रणभेरियाँ बज उठीं, जो आकाश में मेघों की गर्जना के समान प्रतीत हो रही थीं।

रथ पर बैठे हुए रथियों में श्रेष्ठ राधापुत्र कर्ण ने दुर्योधन के उस आदेश को शिरोधार्य करके युद्धकुशल राजा शल्य से कहा- ‘महाबाहो! मेरे घोड़ों को बढ़ाइये, जिससे मैं अर्जुन, भीमसेन, दोनों भाई नकुल-सहदेव तथा राजा युधिष्ठिर का वध कर सकूँ। शल्य! आज सैंकड़ों और सहस्रों कुकपत्रयुक्त बाणों की वर्षा करते हुए मुझ कर्ण के बाहुबल को अर्जुन देखें। शल्य! आज मैं पाण्डवों के विनाश और दुर्योधन की विजय के लिये अत्यन्त तीखे बाण चलाऊँगा'। शल्य ने कहा- 'सूतपुत्र! तुम पाण्डवों की अवहेलना कैसे करते हो। वे सब-के-सब तो सम्पूर्ण अस्त्रों के ज्ञाता, महाधनुर्धर, महाबलवान, युद्ध से पीछे न हटने वाले, अजेय तथा सत्यपराक्रमी हैं। वे साक्षात! इन्द्र के मन में भी भय उत्पन्न कर सकते हैं। राधापुत्र! जब तुम युद्ध स्थल में वज्र की गड़गड़ाहट के समान गाण्डीव धनुष का गम्भीर घोष सुनोगे, तब ऐसी बातें नहीं कहोगे।

जब तुम देखोगे कि भीमसेन ने संग्रामभूमि में गजराजों की सेना के दाँत तोड़-तोड़कर उसका संहार कर डाला है, तब तुम इस प्रकार नहीं बोल सकोगे। जब तुम्हें यह दिखायी देगा कि संग्राम में धर्मपुत्र यधिष्ठिर, नकुल-सहदेव तथा अन्यान्य दुर्जय भूपाल बड़ी शीघ्रता के साथ हाथ चला रहे हैं, अपने तीखे बाणों द्वारा आकाश में मेघों की छाया के समान छाया कर रहे हैं, निरनतर बाण वर्षा करते और शत्रुओं का संहार किये डालते हैं, तब तुम ऐसी बातें मुँह से निकाल सकोगे'। संजय कहते हैं- राजन! मद्रराज की कही हुई उस बात की उपेक्षा करके कर्ण ने उन वेगशाली मर्द नरेश से कहा- ‘चलिये,चलिये'।

इस प्रकार श्रीमहाभारत में कर्णपर्व में शल्य संवाद विषयक छत्तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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