महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 34 श्लोक 159-163

चतुस्त्रिंश (34) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: चतुस्त्रिंश अध्याय: श्लोक 159-163 का हिन्दी अनुवाद

राजन! मैं किसी तरह इस बात पर विश्वास नहीं करता कि कर्ण सूतकुल में उत्पन्न हुआ है। मैं इसे क्षत्रियकुल में उत्पन्न देवपुत्र मानता हूँ। मेरा तो यह विश्वास है कि इसकी माता ने अपने गुप्त रहस्य को छिपाने के लिये तथा इसे अन्य कुल का बालक विख्यात करने के लिये ही सूतकुल में छोड़ दिया होगा। शल्य! मैं सर्वथा इस बात पर विश्वास करता हूँ कि इस कर्ण का जन्म सूतकुल में नहीं हुआ है। इस महाबाहु महारथी और सूर्य के समान तेजस्वी कुण्डल-कवच विभूषित पुत्र को सूतजाति की स्त्री कैसे पैदा कर सकती है? क्या कोई हरिणी अपने पेट से बाघ को जन्म दे सकी है? राजेन्द्र! गजराज के शुण्डदण्ड के समान जैसी इसकी मोटी भूजाएँ हैं तथा समस्त शत्रुओं का संहार करने में समर्थ जैसा इसका विशाल वक्षःस्थल है, उससे सूचित होता है कि परशुराम जी का यह प्रतापी शिष्य महामनस्वी धर्मात्मा वैकर्तन कर्ण कोई प्राकृत पुरुष नहीं है।

इस प्रकार श्रीमहाभारत में कर्णपर्व में त्रिपुरवधोपाख्यान विषयक चौंतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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