महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 30 श्लोक 17-36

त्रिंश (30) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: त्रिंश अध्याय: श्लोक 17-36 का हिन्दी अनुवाद

उन्होंने अपने तीखे बाणों से पताका, ध्वज और आयुधों सहित गजों एवं गजारोहियों की, घोड़ों और घुड़सवारों तथा पैदल मनुष्यों को भी यमलोक भेज दिया। इस प्रकार क्रोध में भरे हुए यमराज के समान अबाध गति से महारथी अर्जुन पर सीधे जाने वाले बाणों से प्रहार करता हुआ अकेला दुर्योधन उनका सामना करने के लिए गया। अर्जुन ने सात बाणों से दुर्योधन के धनुष, सारथि, घोडों और ध्वज को नष्ट करके एक बाण से उसका छत्र भी काट डाला फिर नवें प्राणघातक बाण को धनुष पर रखकर उन्होंने दुर्योधन की ओर चला दिया; परन्तु अश्वत्थामा ने उस उत्तम बाण के सात टुकड़े कर डाले। तब पाण्डु कुमार अर्जुन ने अश्वत्थामा का धनुष काटकर उसके रथ और घोड़ों को नष्ट करके अपने बाणों द्वारा कृपाचार्य के अत्यन्त भयंकर धनुष को भी खण्डित कर दिया। इसके बाद उन्होंने कृतवर्मा का धनुष काटकर उसके ध्वज और घोड़ों को भी तत्काल नष्ट कर दिया। फिर दुःशासन के धनुष के टुकड़े-टुकड़े करके राधापुत्र कर्ण पर आक्रमण किया। तदनन्तर कर्ण ने सात्यकि को छोड़कर अर्जुन को तीन बाणों से बींध डाला। फिर तीस बाण मारकर श्रीकृष्ण को भी घायल कर दिया। इस प्रकार वह दोनों को बारंबार चोट पहुँचाने लगा। उस समय कर्ण क्रोध में भरे हुए इन्द्र के समान रणभूमि में बहुत से बाणों की वर्षा करके शत्रुओं का संहार कर रहा था। परंतु उसे इस कार्य में तनिक भी क्लेश अथवा थकावट का अनुभव नहीं होता था। फिर यात्यकि ने भी लौटकर कर्ण को तीखे बाणों से घायल करके पुनः उसे एक सौ निन्यानवे भयंकर बाण मारे। इसके बाद कुन्ती पुत्रों की सेना के सभी प्रमुख वीर कर्ण को पीड़ा देने लगे।

युधामन्यु, शिखण्डी, द्रौपदी के पाँचों पुत्र, प्रभद्रक गण, उत्तमौजा, युयुत्सु, नकुल-सहदेव, धृष्टद्युम्न, चेदि, कारूप, मत्स्य और केकय देशों की सेनाएँ, बलवान चेकितान तथा उत्तम व्रत का पालन करने वाले धर्मराज युधिष्ठिर ये भयंकर पराक्रम प्रकट करने वाले रथी, घुड़सवार, हाथी सवार और पैदल सैनिकों द्वारा रणभूमि में कर्ण को चारों ओर से घेरकर उसके ऊपर नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों की वर्षा करने लगे। सभी भयंकर वचन बोलते हुए वहाँ कर्ण के वध का निश्चय कर चुके थे। जैसे प्रचण्ड वायु वृक्ष को तोड़कर गिरा देती है, उसी प्रकार कर्ण अपने तीखे बाणों से शत्रुओं की उस शस्त्रवर्षा को बहुधा छिन्न-भिन्न करके अपने अस्त्रबल से दूर हटा दिया। क्रोध में भरा हुआ कर्ण रथियों, महावतों सहित हाथियों, सवारों सहित घोड़ों तथा पैदल-समूहों का वध करता देखा जा रहा था। कर्ण के अस्त्रों के तेज से मारी जाती हुई पाण्डवों की सेना शस्त्र, वाहन, शरीर और प्राणों से रहित हो प्रायः रणभूमि से विमुख होकर भाग चली।

तब अर्जुन ने मुस्कराते हुए अपने अस्त्र से कर्ण के अस्त्र को नष्ट करके बाणो की वर्षा द्वारा आकाश, दिशा और पृथ्वी को आच्छादित कर दिया। उनके कुछ बाण मूसलों के समान गिरते थे, कुछ परिघों के समान, कुछ शतघ्नियों के तुल्य तथा कुछ दूसरे बाण भयंकर वज्रों के समान शत्रुओं पर पड़ते थे। उन बाणों से हताहत होती हुई पैदल, घोड़े, रथ और हाथियों से युक्त कौरव सेना आँख मूँदकर जोर-जोर से चिल्लाने और चक्कर काटने लगी। उस समय घोड़े, हाथी और मनुष्यों को ऐसा युद्ध प्राप्त हुआ, जिसमें मृत्यु निश्चित है। उन सब लोगों पर जब बाणों की मार पड़ने लगी, तब वे सब-के-सब आत और भयभीत होकर भाग चले।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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