महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
24.बाजी
इस पर शकुनि सभा के बीच उठ खड़ा हुआ और पांचों पांडवों को एक-एक करके पुकारा और घोषणा की कि वे अब उसके गुलाम हो चुके हैं। शकुनि की दाद देने वालों के हर्षनाद से और पांडवों की दुर्दशा पर तरस खाने वालों के हाहाकार से सारा सभा-मंडप गूंज उठा। सभा में इस तरह खलबली मचने के बाद शकुनि ने युधिष्ठिर से कहा- "एक और चीज है जो तुमने अभी हारी नहीं। उसकी बाजी लगाओ तो अपने-आपको भी छुड़ा सकते हो। अपनी पत्नी द्रौपदी को दांव पर क्यों नहीं लगाते?" और जुए के नशे में चूर युधिष्ठिर के मुंह से निकल पड़ा- "चलो अपनी पत्नी द्रौपदी की भी बाजी लगाई!" यह मुंह से तो निकल गया; पर उसके परिणामों की सोचकर वह विकल हो उठे कि "हाय यह क्या कर डाला!" धर्मात्मा युधिष्ठिर की इस बात पर सारी सभा में एकदम हाहाकार मच गया। जहाँ वृद्ध लोग बैठे थे, उधर से धिक्कार की आवाजें आने लगीं। लोग बोले- "छि:-छि:, कैसा घोर पाप है!" कुछ ने आंसू बहाये और कुछ लोग परेशानी के मारे पसीने से तर-ब-तर हो गये। दुर्योधन और उसके भाइयों ने बड़ा कोलाहल मचाया और आनन्द से नाच उठे। पर युयुत्सु नाम का धृतराष्ट्र का एक बेटा शोक-संतप्त हो उठा और ठंडी आह भरकर उसने सिर झुका लिया। शकुनि ने पांसा फेंककर कहा- "यह लो, यह बाजी भी मेरी ही रही।" बस फिर क्या था? दुर्योधन ने विदुर को आदेश देते हुए कहा- "आप अभी रनवास में जायें और द्रौपदी को यहाँ ले आएं। उससे कहें कि जल्दी आवे। अब उसे हमारे महल में झाड़ू देने का काम करना होगा।" विदुर बोले- "मूर्ख! नाहक क्यों मृत्यु को न्यौता देने चला है। ध्यान रक्खो, तुम्हारी दशा ठीक उसी की-सी है, जो किसी अंधेरे अथाह गड्ढे के मुंह पर रस्सी से बंधा लटक रहा हो। अपनी विषम परिस्थिति का तुम्हें ज्ञान नहीं, इसी कारण राजोचित व्यवहार छोड़कर निरे गंवार की-सी बातें करने लगे हो!" दुर्योधन को यों फटकारने के बाद विदुर ने सभासदों की ओर देखकर कहा- "अपने को हार चुकने के बाद युधिष्ठिर को कोई अधिकार नहीं था कि वह पांचालराज की बेटी को दांव पर लगायें। कौरवों का अन्त समीप आ गया प्रतीत होता है। इसीलिए अपने हित की बात नहीं सुनते हैं और अपने ही पांव तले गड्ढा खोद रहे हैं।" विदुर की बातों से दुर्योधन बौखला उठा। अपने सारथी प्रातिकामी को बुलाकर कहा- "विदुर तो हमसे जलते हैं और पांडवों से डरते हैं। तुम्हें तो कुछ डर नहीं है? रनवास में जाओ और द्रौपदी को बुला लाओ।" |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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