महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
16.द्रौपदी स्वयंवर
स्वयंवर - मंडप में एक वृहदाकार धनुष रक्खा हुआ था, जिसकी डोरी फौलादी तारों की बनी थी। ऊपर काफी ऊंचाई पर एक सोने की मछली टंगी हुई थी। उसके नीचे एक चमकदार यंत्र बड़े वेग से घूम रहा था। राजा द्रुपद ने घोषणा की थी कि, "जो राजकुमार उस भारी धनुष को तानकर डोरी चढ़ायेगा और ऊपर घूमते हुए गोल यंत्र के मध्य में से तीर चलाकर ऊपर टंगे हुए निशाने को गिरा देगा, उसी को द्रौपदी वर माला पहनायेगी।" इस स्वयंवर के के लिये दूर-दूर से अनेक क्षत्रिय वीर आये हुए थे। मण्डप में सैकड़ों राजा इकट्ठे हुए थे जिनमें धृतराष्ट्र के सौ बेटे , अंग-नरेश कर्ण, श्री कृष्ण, शिशुपाल, जरासन्ध आदि भी शामिल हुए थे। दर्शकों की भारी भीड़ थी। सभा में सागर की लहरों के सदृश गंभीर शोर हो रहा था। बाजे बज रहे थे, शंख-तुरही आदि के मंगल-निनाद से दिशाएं गूंज रही थीं। राजकुमार धृष्टद्युम्न घोड़े पर सवार होकर आगे आया। उसके पीछे हाथी पर सवार द्रौपदी आई उसने मंगल-स्नान करके अपने केश अगर के सुगन्धित धुएं से सुखा रखे थे। वह रेशमी साड़ी पहने थी। स्वाभाविक सौंदर्य ही मानो उसका भूषण प्रतीत होता था। हाथ में फूलों का हार लिए राजकन्या हाथी से उतरी और सभा में पदार्पण किया। एकत्रित राजकुमार उसकी छवि निहारकर आनंद-मुग्ध हो गये। कनखियों से उन्हें देखती हुई द्रुपद-राजकन्या सभा के बीच में से होकर मण्डप में जा पहुँची। ब्राह्मणों ने ऊंचे स्वर से मंत्र पढ़कर अग्नि में आहुति दी और 'स्वस्ति' कहकर आशीर्वाद दिये। धीरे-धीरे बाजों का स्वर मंद हो चला। राजकुमार धृष्टद्युम्न अपनी बहन का हाथ पकड़कर मण्डप के बीच में ले गया और गंभीर स्वर में घोषणा करते हुए बोला- "मंडप में उपस्थित सब वीर सुनें! यह धनुष है, ये बाण हैं, वह निशाना है। जो भी रूपवान, बली एंव कुलीन व्यक्ति घूमते हुए यंत्र के बीच में से पांच बाण चलाकर निशाना गिरा देगा, मेरी बहन उसको ही अपनी वरमाला पहनायेगी; यह सत्य है।" यह घोषणा करने के बाद धृष्टद्युम्न बारी-बारी से उपस्थित राजकुमारों के नाम एवं कुल का परिचय अपनी बहन को देने लगा। इसके बाद एक-एक करके राजकुमार उठते और धनुष पर डोरी चढ़ाते, हारते और अपमानित होकर लौट आते। कितने ही सुप्रसिद्ध वीरों को इस तरह मुंह की खानी पड़ी। इस प्रकार शिशुपाल, जरासन्ध, शल्य, दुर्योधन जैसे पराक्रमी राजकुमार तक असफल हो गये। जब कर्ण की बारी आई तो सभा में एक लहर दौ़ड़ गई। सबने सोचा, अंग-नरेश जरूर सफल हों जायेंगे। कर्ण ने धनुष उठाकर खड़ा कर दिया और तानकर प्रत्यंचा भी चढ़ानी शुरू की अभी डोरी के चढ़ाने में बाल-भर की कसर रह गई थी कि इतने में धनुष का डण्डा हाथ से छूट गया और उछलकर जोर से उसके मुंह पर लगा। अपनी चोट सहलाता हुआ कर्ण अपनी जगह पर जा बैठा। इतने में उपस्थित ब्राह्मणों के बीच से एक तरुण ब्रह्मचारी उठ खड़ा हुआ। ब्राह्मणों की मंडली में ब्राह्मण वेषधारी अर्जुन को यों खड़ा होते देखकर सभा में बड़ी हलचल मच गई। लोगों में तरह-तरह की चर्चा होने लगी और सभा में दो पक्ष हो गये। उपस्थित ब्राह्मणों में भी दो दल बन गये। स्वयंवर के एक दल ने इस ब्रह्मचारी का खूब स्वागत किया और नारे लगाये। दूसरे ने उसका विरोध किया। बहुत-से ब्राह्मणों ने चिल्लाकर कहा कि जिस प्रयत्न में कर्ण और शल्य जैसे महारथी हार मान चुके हैं उसमें इस ब्राह्मण ब्रह्मचारी का हारना सारे विप्रकुल के लिये अपमान की बात हो जायेगी। अतः इसे यह दुःसाहस नहीं करना चाहिए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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