महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
13.लाख का घर
पुरोचन ने यह सारा काम पूर्ण सफलता के साथा पूरा करने का वचन दिया और तुरन्त वारणावत के लिए रवाना हो गया। एक शीघ्रगामी रथ पर बैठकर पुरोचन ने पांडवों के लिए बहुत बड़ा और खूबरसूरत महल बनवाया। सन, घी, मोम, तेल, लाख, चरबी आदि जल्दी आग पकड़ने वाली चीजों को मिट्टी में मिलाकर उसने यह सुन्दर भवन बनवाया। दीवारों पर जो रंग लगा था वह भी जल्दी भड़कने वाली चीजों का लगा था। जहां-तहां कमरों में भी ऐसी ही चीजें गुप्त रूप से रक्खी गई थीं कि जिनको जल्दी ही आग लग सके। पर इतनी खूबी से यह सब प्रबन्ध किया गया था कि देखने वालों को इन बातों का तनिक भी पता नहीं लग सकता था। भवन में ऐसे-ऐसे आसन और पलंग बिछे थे कि देखकर जी ललचा जाता था। इस प्रकार बड़ी चतुराई से पुरोचन पांडवों के लिए वारणावत में ठहरने के लिए भवन बनवा रहा था। इस बीच अगर पांडव वहाँ जल्दी पहुँच गये तो कुछ समय ठहरने के लिए एक और जगह का प्रबन्ध पुरोचन ने कर रखा था। दुर्योधन की योजना यह थी कि कुछ दिनों तक पांडवों को लाख के भवन में आराम से रहने दिया जाये। जब वे पूर्ण रूप से निःशंक हो जायें, तब रात में जबकि वे सो रहे हों, भवन में आग लगा दी जाये, जिससे पांडव तो जलकर भस्म हो जाये और कौरवों पर कोई दोष भी न लगा सके। सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे, ऐसी यह योजना कुशलतापूर्वक दुर्योधन ने बनाई थी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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