महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
गणेश जी की शर्त
इस प्रकार कुछ दिन शांति रही। उन दिनों लोगों में चौसर खेलने का आम रिवाज था। राज्य तक की बाजियाँ लगा दी जाती थीं। इस रिवाज के मुताबिक एक बार पाँडवों और कौरवों ने चौपड़ खेला। कौरवों की तरफ से कुटिल शकुनि खेला। उसने धर्मात्मा युधिष्ठिर को हरा दिया। इसके फलस्वरूप पाँडवों का राज्य छिन गया और उनको तेरह वर्ष का वनवास भोगना पड़ा। उसमें एक शर्त यह भी थी कि बारह वर्ष के बाद एक वर्ष अज्ञातवास करना होगा। उसके बाद उनका राज्य उन्हें लौटा दिया जायेगा। द्रौपदी के साथ पांचों पांडव बारह वर्ष वनवास और एक वर्ष अज्ञातवास में बिताकर वापस लौटे। पर लालची दुर्योधन ने लिया हुआ राज्य वापस करने से इनकार कर दिया। अतः पाँडवों को अपने राज्य के लिये लड़ना पड़ा। युद्ध में सारे कौरव मारे गये, तब पाँडव उस विशाल साम्राज्य के स्वामी हुए। इसके बाद छत्तीस वर्ष तक पाँडवों ने राज्य किया और फिर अपने पोते परीक्षित को राज्य देकर द्रौपदी के साथ तपस्या करने हिमालय चले गये। संक्षेप में यही महाभारत है। महाभारत की गणना भारतीय साहित्य-भण्डार के सर्वश्रेष्ठ महाग्रन्थों में की जाती है। इसमें पाँडवों की कथा के साथ अनेक सुन्दर उपकथाएँ हैं तथा बीच-बीच में सूक्तियाँ एवं उपदेशों के उज्ज्वल रत्न भी जुड़े हुए हैं। महाभारत एक विशाल महासागर है, जिसमें अनमोल मोती और रत्न भरे पड़े हैं। रामायण और महाभारत संस्कृति और धार्मिक विचार के मूल स्त्रोत माने जा सकते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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