महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
87.कुंती का दिया वचन
भीम ने बाण चलाकर गदा को रोक दिया और कर्ण पर बाणों की बौछार जारी रखी। कर्ण को फिर हार खानी पड़ी और वह पीठ दिखाकर मैदान से हट गया। इस पर दुर्योधन को असह्य शोक हुआ। उसने अपने सात भाइयों चित्र, उपचित्र, चित्राक्ष, चारूमित्र, शरासन, चित्रायुध और चित्रवर्म को कर्ण की सहायता करने को भेजा। सातों भीम से जा भिड़े और विलक्षण रण-कुशलता का परिचय दिया। फिर भी भीमसेन के आगे भला वे बालक कब टिक सकते थे? एक-एक करके सातों भाई सदा की नींद में सो गये। यह देख कर्ण की आंखों में आसू उमड़ आये और उसके क्रोध का ठिकाना न रहा। एक अन्य रथ पर सवार होकर काल की भाँति भीमसेन पर भयानक आक्रमण करने लगा। भीम और कर्ण दोनों वीर ऐसे दीख पड़े जैसे दो गरजते व चमकते हुए बादल हों। भीमसेन का पराक्रम देखकर अर्जुन, श्रीकृष्ण और सात्यकि- तीनों पांडव वीर बहुत प्रसन्न हुए। यहाँ तक कि भूरिश्रवा, कृप, अश्वत्थामा, शल्य, जयद्रथ आदि वीर भी भीमसेन की अद्भुत रण-कुशलता की प्रशंसा करने लगे। दुर्योधन को यह बिलकुल पसंद न आया। वह अपने पक्ष के लोगों को भीमसेन की तारीफ करना न सह सका। कर्ण ही हालत पर उसे बड़ा दु:ख हुआ। उसने अपने सात और भाइयों को यह आज्ञा देकर भेजा कि जाकर भीमसेन को घेर लो और उस पर जोरों से वार करो। ऐसा न हो कि भीमसेन के बाण कर्ण के प्राण ले लें। दुर्योधन की आज्ञा मानकर शत्रुंजय, शत्रुहंस, चित्र, चित्रायुध, दृढ, चित्रसेन और विकर्ण-इन सातों भाइयों ने जाकर भीम को घेर लिया और एक साथ बाण बरसाकर उसे परेशान किया। पर भीमसेन ने उन सातों भाइयों को थोड़ी देर में ही मार गिराया। विकर्ण अपनी न्यायप्रियता के कारण सबका प्यारा था। इस कारण जब विकर्ण भी मरकर गिर पड़ा, तो भीमसेन बहुत उदास हो गया। व्यथित होकर बोला- "धर्म एवं न्याय के ज्ञाता विकर्ण! क्षत्रियोचित कर्तव्य का पालन करते हुए तुम भी इस लड़ाई में काम आ गये! तुम मारे गये और वह भी मेरे हाथों। यह युद्ध भी कैसा कठोर है जिसमें तुम्हें और पितामह भीष्म को भी मारना हमारे लिये आवश्यक हो गया।" इस प्रकार एक-एक करके दुर्योधन के भाइयों को अपनी खातिर प्राणों की आहुति देते देखकर कर्ण के संताप की सीमा न रही। शोकातुर होकर वह रथ पर गिर पड़ा और दोनों आंखें बंद कर लीं। उसे बेहोशी-सी आ गई, पर थोड़ी देर बाद वह फिर संभला और जी कड़ा करके फिर से लड़ाई में जुट गया। भीम ने फिर बाण चलाकर कर्ण का धनुष काट डाला। जैसे ही कर्ण ने दूसरा धनुष लिया, भीम ने उसे भी काटकर गिरा दिया। इस प्रकार कर्ण के अठारह धनुष कट गये। इस पर कर्ण की सतर्कता और शांति जाती रही। भीम की ही भाँति वह भी उत्तेजित हो उठा। दोनों एक-दूसरे पर भयानक वार करने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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