महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
82.सिंधुराज
यह उस वरदान का परिणाम था जो श्रुतायुध की मां ने उसके लिये प्राप्त किया था। श्रुतायुध की माता पर्णाशा ने वरुण देवता से प्रार्थना की कि मेरा बेटा संसार में किसी शुत्र के हाथों न मारा जाये। वरुण देवता पर्णाशा से बड़ा स्नेह करते थे। उन्होंने कहा- "तुम्हारे पुत्र को एक दैवी हथियार प्रदान करूंगा। उसे लेकर यदि वह युद्ध करेगा तो कोई भी वीर उसे परास्त नहीं कर सकेगा। लेकिन शर्त यह है कि जो नि:शस्त्र हो, युद्ध में शरीक न हुआ हो, उस पर यह शस्त्र नहीं चलाया जाना चाहिए। यदि चलाया गया तो उलटकर यह चलाने वाले का ही वध कर देगा।" यह कहकर वरुण ने एक दैवी गदा पर्णाशा के पुत्र को प्रदान की। युद्ध के जोश में श्रुतायुध को यह शर्त याद न रही। इसीलिये उसने श्रीकृष्ण पर गदा चला दी। श्रीकृष्ण ने उस गदा को अपने वक्षस्थल पर ले लिया; परंतु मंत्र में त्रुटि होने पर जैसे मंत्र पढ़ने वाले के बस का भूत उलटकर उसी का वध कर देता है, उसी प्रकार श्रुतायुध की फेंकी हुई गदा उलटकर उसी को जा लगी। श्रुतायुध जमीन पर गिर पड़ा, जैसे आंधी के चलने से उखड़कर कोई भारी पेड़ गिर पड़ता है। इस पर कांभोजराज सुदक्षिण ने अर्जुन पर जोरों का हमला कर दिया। किंतु अर्जुन ने उस पर बाणों की ऐसी वर्षा की कि उसका रथ चूर हो गया, कवच के टुकड़े-टुकड़े हो गये और छाती पर बाण लगने से कांभोजराज हाथ फैलाता हुआ धड़ाम से ऐसे गिर पड़ा, जैसे उत्सव समाप्त होने पर इंद्र- ध्वजायें। श्रुतायुध और कांभोजराज जैसे पराक्रमी वीरों का यह हाल देखकर कौरव सेना में बड़ी घबराहट मच गई। इस पर श्रुतायुध और अच्छुतायु नाम के दो वीर राजाओं ने अर्जुन पर दोनों तरफ से बाण वर्षा शुरू कर दी। इससे दोनों में फिर घोर संग्राम शुरू हो गया। अर्जुन बहुत घायल हो गया और थककर ध्वज-स्तम्भ के सहारे खड़ा हो गया। श्रीकृष्ण ने उसे आश्वासन दिया। थोड़ी देर में अर्जुन ने अपनी थकान मिटाकर ताजा हो शत्रु-सेना पर फिर से बाण बरसाने शुरू कर दिये। देखते-देखते, दोनों भाइयों को चिर-निद्रा में सुला दिया। यह देख उन दोनों के दो पुत्रों ने युद्ध शुरू कर दिया। उनको भी अर्जुन ने मृत्युलोक पहुँचा दिया और इस प्रकार अपना गांडीव हाथ में लिये हुए असंख्य वीरों का काम तमाम करता हुआ अर्जुन आगे बढ़ता गया और कौरव सेना-समुद्र को चीरता हुआ अंत में उस जगह जा पहुँचा जहाँ जयद्रथ अपनी सेना से घिरा खड़ा था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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