महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
68.पांचवां दिन
किंतु भूरिश्रवा भी साधारण वीर न था, बड़ा पराक्रमी था। सात्यकि की सेना पर जोरों से हमला करके सबको खदेड़ दिया। अकेला सात्यकि अंत तक डटा रहा। यह हाल देखकर सात्यकि के दसों पुत्र भूरिश्रवा पर टूट पड़े। दसों वीर युवकों के हमले का अकेले भूरिश्रवा ने बड़ी वीरता से मुकाबला किया। यद्यपि सात्यकि के दसों लड़कों ने उसे घेरकर बाणों की बौछार कर दी तो भी भूरिश्रवा ने अद्भुत चतुरता का परिचय दिया। उन सबके धनुष उसने काट डाले और दसों को एक साथ ही यमपुरी पहुँचा दिया। दसों पराक्रमी वीर जमीन पर ऐसे गिरे जैसे वज्र गिरने पर पेड़। अपने सारे पुत्रों को यों युद्धभूमि में मृत पड़े देखकर सात्यकि मारे शोक और क्रोध के आपे से बाहर हो गया और भूरिश्रवा पर झपटा। दोनों के रथ आपस में टकराकर चूर-चूर हो गये। तब दोनों ढाल-तलवार लेकर भूमि पर लड़ने लगे। इतने में भीम अपना रथ दौड़ाता हुआ आया और सात्यकि के आगे आ खड़ा हुआ और उसे जबरदस्ती अपने रथ पर बिठाकर युद्धभूमि से बाहर ले गया। भूरिश्रवा तलवार का धनी था। उसके आगे किसी का भी टिकना मुश्किल था। भीमसेन यह बात भली-भाँति जानता था और इसी कारण उसने सात्यकि को भूरिश्रवा से लड़ने से रोक लिया। उस दिन संध्या होते-होते अर्जुन ने हजारों कौरव-सैनिकों का जीवन समाप्त कर दिया। जितने वीर अर्जुन के विरुद्ध लड़ने के लिये दुर्योधन ने भेजे, वे सब ऐसे बेबस होकर मरे, जैसे आग में कीड़े। यह देखकर पांडव-सेना के वीरों ने अर्जुन को चारों ओर से घेर लिया और जोर का जय-जयकार कर उठे। उधर सूरज डूबा और भीष्म ने युद्ध बंद करने की आज्ञा दी। दोनों ओर के थके-थकाये सैनिक अपनी-अपनी छावनी की ओर चले गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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