महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
46.राजकुमार उत्तर
तब अर्जुन ने राजकुमार उत्तर को अपना, अपने भाइयों तथा द्रौपदी का असली परिचय दिया और बोला- "राजा विराट की सेवा करने वाले कंक ही महाराजा युधिष्ठिर है। रसोइया वल्लभ, जो तुम्हारे पिता की भोजनशाला का आचार्य है, भीमसेन है। जिसका अपमान करने के कारण कीचक को मृत्यु के मुंह में जाना पड़ा था वही सैरंध्री पांचाल नरेश की यशस्विनी पुत्री द्रौपदी है। अश्वपाल ग्रंथिक और ग्वाले के रुप में काम करने वाले तंतिपाल और कोई नहीं, नकुल और सहदेव ही हैं। और मै हूँ अर्जुन! इसलिये राजकुमार! घबराओ नहीं। अभी मेरी वीरता का परिचय पा लोगे। भीष्म, द्रोण और अश्वत्थामा के देखते-देखते कौरव सेना को हरा दूंगा और सारी गायें छुड़ा लाऊंगा और तुम यशस्वी बनोगे।" यह सुनते ही उत्तर हाथ जोड़कर अर्जुन को प्रणाम करके बोला- "पार्थ! आपके दर्शन पाकर मैं कृतार्थ हुआ। क्या सचमुच ही मैं अब यशस्वी धनंजय को अपनी आंखों देख रहा हूँ। जिन्होंने मुझ कायर में वीरता का संचालन किया, क्या वह विजयी अर्जुन ही हैं? नासमझी के कारण मुझसे जो भूल हुई, उसे क्षमा करें।" कौरव सेना को देखकर उत्तर घबरा न जाये, इसलिये उसका हौसला बढ़ाते हुए अर्जुन पहले के अनेक विजयी युद्धों की कथा सुनाता जाता था। इस प्रकार उत्तर को धीरज बंधा और उसका हौसला बढ़ाकर अर्जुन ने कौरव सेना के सामने रथ ला खड़ा किया। दोनों हाथों से भगवान को प्रणाम किया। उसने हाथों की चूड़ियां उतार फेंकी और चमड़े के अंगुलित्राण पहन लिये। खुले केश संवारकर कपड़े से कसकर बांध लिये। पूर्व की ओर मुँह करके अस्त्रों का ध्यान किया और रथ पर आरुढ़ होकर गांडीव धनुष संभाल लिया। डोरी चढ़ाकर तीन बार जोर से टंकार दिया। गांडीव की टंकार से दसों दिशायें गूंज उठीं। कौरव सेना के वीर यह टंकार सुनते ही पुकार उठे- "अरे, यह तो अर्जुन के गांडीव की टंकार है।" कौरव सेना टंकार की ध्वनि से स्वस्थ होने भी न पाई थी कि अर्जुन ने खड़े होकर अपने देवदत्त नामक शंख की ध्वनि की जिससे कौरव सेना थर्रा उठी। उसमें खलबली मच गई कि पांडव आ गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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