महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
44.अज्ञातवास
अगले दिन सुबह जबकि कीचक ने द्रौपदी को देखा तो बोला- "सैरंध्री! तुम्हें कल मैंने सभा में ठोकर मारक गिराया था। सभा के सब लोग देख रहे थे; किन्तु किसी का साहस न हुआ कि तुम्हें बचाने के लिए आगे बढ़े! सुनो, विराट मत्स्य देश का राजा है सही, पर है नाममात्र का। असल में तो मैं ही यहाँ का सबकुछ हूँ। यदि मेरी इच्छा पूरी करोगी तो महारानी का सा पद व सुख भोगोगी और मैं तुम्हारा दास बनकर रहूंगा। मेरी बात मान लो।" द्रौपदी ने कुछ ऐसा भाव जताया मानो कीचक की बात उसे स्वीकार है। वह बोली- "सेनापति! यदि आप मुझे वचन दें कि मेरे-आपके संबंध की बात किसी को मालूम न होने देंगे तो मैं आपके अधीन होने को तैयार हूँ। मैं लोक-निन्दा से डरती हूँ और यह नहीं चाहती कि यह बात आपके साथी-संबंधियों को मालूम हो।" यह सुनकर कीचक मारे आनन्द के नाच उठा और द्रौपदी जो भी कुछ कहे, उसे मानने के लिए तैयार हो गया। द्रौपदी बोली- "नृत्यशाला में स्त्रियां दिन के समय नाच सीखती रहती हैं और रात को सब अपने-अपने घर चली जाती हैं। रात में वहाँ कोई नहीं रहता। इसलिए आज रात को आप वहीं जाकर मुझसे मिलें। मैं वहीं किवाड़ खुले रखकर खड़ी रहूंगी और वहीं मैं आपकी इच्छा पूर्ण करुंगी।" कीचक के आनन्द का ठिकाना न रहा। रात हुई। कीचक स्नान करके व खूब बन-ठनकर निकला और दबे पांव नृत्यशाला की ओर बढ़ा। किवाड़ खुले थे। कीचक जल्दी से अन्दर घुस गया ताकि कोई देख न ले। नृत्यशाला में अंधेरा था। कीचक ने गौर से देखा तो पलंग पर कोई लेटा हुआ दिखाई दिया। अंधेरे में टटोलता हुआ पलंग के पास पहुँचा। पलंग पर भीमसेन सफेद रेशम की साड़ी पहने लेटा हुआ था। कीचक ने उसे सैरंध्री समझा और धीरे से उस पर हाथ फेरा। कीचक का हाथ फेरना था कि भीमसेन उस पर ऐसे झपटा कि जैसे हिरन पर शेर झपटता है। एक धक्के में भीम ने कीचक को गिरा दिया और अंधेरे में ही दोनों में मल्लयुद्ध शुरु हो गया। कीचक ने यही समझा कि सैरंध्री के गन्धर्वों में से किसी के साथ वह लड़ रहा है। वैसे कीचक भी कुछ कम ताकतवर नहीं था। उन दिनों कुश्ती लड़ने में भीम, बलराम और कीचक तीनों को एक समान ही निपुणता और यश प्राप्त था। इसलिए दोनों में ऐसा मल्लयुद्ध होने लगा, जैसे प्राचीन में बाली और सुग्रीव का हुआ बतलाते हैं। कीचक बली था अवश्य, पर कहाँ भीम और कहाँ कीचक! वह भीम के आगे ज्यादा देर ठहर न सका। जरा देर में ही भीम ने कीचक की ऐसी गति बना दी कि उसका एक गोलाकार मांस पिंड सा बन गया। फिर द्रौपदी से विदा लेकर भीम रसोईघर में चला गया और नहा-धोकर आराम से सो रहा। इधर द्रौपदी ने नृत्यशाला के रखवालों को जगाया और बोली- "कीचक हमेशा मुझे तंग किया करता था, आज भी वह तंग करने आया था। तुम लोगों को मालूम है कि मेरे पति गन्धर्व हैं। उन्होंने क्रोध में आकर कीचक का वध कर दिया है। अधर्म के रास्ते चलने के कारण गन्धर्वों के हाथ वह तुम्हारे सेनापति मरे पड़े हैं।" रखवालों ने देखा कि वहाँ पर सेनापति कीचक नहीं, बल्कि खून से लथपथ एक मांस-पिंड पड़ा था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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