महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
3.अम्बा और भीष्म
अम्बा ने कहा- "ब्राह्मण-वीर, मैं विवाह नहीं करना चाहती। मेरी प्रार्थना केवल यही है कि आप भीष्म से युद्ध करें। मैं आपसे भीष्म के वध की भीख मांगती हूँ।" परशुराम को अम्बा की प्रार्थना पसंद आई। क्षत्रियों के शत्रु जो ठहरे! बड़े उत्साह के साथ वह भीष्म के पास गये और उन्हें युद्ध के लिए ललकारा। दोनों कुशल योद्धा थे और धनुष-विद्या के जानकार भी। दोनों ही जितेन्द्रिय और ब्रह्मचारी थे। समान योद्धाओं की टक्कर थी। कई दिनों तक युद्ध होता रहा, फिर भी हार-जीत का निश्चय न हो सका। अंत में परशुराम ने हार मान ली और उन्होंने अम्बा से कहा- ‘जो कुछ मेरे वश में था, कर चुका। अब तुम्हारे लिये यही उचित है कि तुम भीष्म ही की शरण लो।" अम्बा के क्षोभ और शोक की सीमा न रही। निराश होकर वह हिमालय पर चली गई और कैलाशपति महेश्वर की आराधना में कठोर तपस्या आरम्भ कर दी। कैलाशनाथ उससे प्रसन्न हुए। उसे दर्शन देकर बोले- "पुत्री, तुम्हारी तपस्या सफल हुई। अगले जन्म में तुम्हारे हाथों भीष्म की अवश्य मृत्यु होगी।" यह कहकर कैलाशपति अन्तर्धान हो गये। भीष्म से जितनी जल्दी हो सके बदला लेने के लिये अम्बा उत्कंठित हो उठी। स्वाभाविक मृत्यु तक ठहरना भी उसको दूभर मालूम हुआ। उसने एक भारी चिता जलाई। क्रोध के कारण उसकी आंखें अग्नि के समान प्रज्वलित हो उठीं। जब उसने धधकती हुई आग में कूदकर प्राणों की आहुति दी तो ऐसा प्रतीत हुआ मानो अग्नि से भेंट हो रही हो। महादेव के वरदान से अम्बा दूसरे जन्म में राजा द्रुपद की कन्या हुई। पिछले जन्म की बातें उसे भलीभाँति याद थीं। जब वह कुछ बड़ी हुई तो खेल खेल में भवन के द्वार पर टंगी हुई वह कमल के फूलों की माला, जो अम्बा को पिछले जन्म में भगवान कार्तिकेय से प्राप्त हुई थी, उठाकर उसने अपने गले में डाल ली। कन्या की यह क्रीड़ा देखकर राजा द्रुपद घबरा उठे। सोचा- इस पगली कन्या के कारण भीष्म से वैर क्यों मोल लूँ? यह सोचकर राजा द्रुपद ने उसे अपने घर से निकाल दिया। पर अम्बा ऐसी बातों से कब विचलित होने वाली थी? उसने वन में जाकर फिर तपस्या शुरु की और तपोबल से स्त्री रूप छोड़कर पुरुष बन गई और उसने अपना नाम शिखण्डी रख लिया। जब कौरवों और पाण्डवों के बीच कुरुक्षेत्र के मैदान में युद्ध हुआ तो भीष्म के विरुद्ध लड़ते समय शिखण्डी ने ही अर्जुन का रथ चलाया था। शिखण्डी रथ के आगे बैठा था और अर्जुन ठीक उसके पीछे। ज्ञानी भीष्म को यह बात मालूम थी कि अम्बा ही शिखण्डी का रूप धारण किये हुए है इसलिए उन्होंने उस पर बाण चलाना अपनी वीरोचित प्रतिष्ठा के विरुद्ध समझा। शिखण्डी को आगे करके अर्जुन ने भीष्म पितामह पर हमला किया और अंत में उन पर विजय प्राप्त की। जब भीष्म आहत होकर पृथ्वी पर गिरे, तब जाकर अम्बा का क्रोध शान्त हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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