महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
अभिमन्यु का विवाह
दुर्योधन ने सोचा कि अर्जुन कहीं अपनी बात कहना आरम्भ न कर दें, इसलिए हड़बड़ाकर बोल पड़ा- "हे कृष्ण, मैं भी यहाँ बैठा हूं, बल्कि मैं पहले ही तुमसे सहायता मांगने के लिए यहाँ आ पहुँचा था।" दुर्योधन श्रीकृष्ण से बड़े थे, इसलिए उन्होंने हाथ जोड़कर कहा- "क्षमा कीजिएगा भाई साहब, मैंने आपको नहीं देखा था। खैर अब मैं जान गया, आप दोनों मेरे पास सहायता मांगने के लिए आये हैं। मैं आप दोनों को सहायता दूंगा। मेरे पास दो चीजे हैं एक तो मेरी शक्तिशाली नारायणी सेना है और दूसरे मैं स्वयं हूँ। मेरी सेना जिसके साथ जायेगी उसी की होकर लड़ेगी, मगर मैं जिस पक्ष में जाऊंगा उसके लिए और चाहे जो काम करूं पर हथियार नहीं उठाऊंगा। अब आप दोनों आपस में यह तय कर लें कि किसे क्या चाहिए। अर्जुन चूंकि आपसे आयु में छोटा है और चूंकि पहले उसी पर मेरी दृष्टि गई इसलिए मैं अर्जुन से ही पूछूंगा कि उन्हें क्या चाहिए?" दुर्योधन का दिल धड़धड़ा उठा कि अर्जुन कहीं सेना न मांग लें। मगर अर्जुन दुर्योधन से अधिक चतुर था। उसने कहा- "हे केशव, मैं तुम्हें चाहता हूँ। तुम भले ही निहत्थे रहो, पर मेरे सारथी बन जाना।" अर्जुन की मांग सुनकर दुर्योधन बहुत प्रसन्न हुआ। यादवों की नारायणी सेना परम शक्तिशाली थी। उसे पाकर दुर्योधन को लगा कि उसकी जीत अब निश्चित हो गयी है। वह बेचारा यह नहीं जानता था कि जिस पक्ष में धर्म और श्रीकृष्ण होते हैं, जीत उसी की होती है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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