महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
सत्यवती के बेटे
लेकिन रानी सत्यवती के दुर्भाग्य ने यहाँ भी उनका पीछा न छोड़ा। उनका बड़ा पोता धृतराष्ट्र जन्म से ही अन्धा था और उनके छोटे पोते पाण्डु को भी पीलिया रोग हो गया था। लेकिन दासी के पुत्र विदुर सब तरह से सुन्दर, स्वस्थ और बुद्धिमान निकले। भीष्म प्रतिज्ञा करने वाले महान गंगादत्त जी जैसे ताऊ की छत्रछाया में यह बच्चे भी पढ़-लिखकर बड़े हुए। धृतराष्ट्र का ब्याह गान्धर्व देश की राजकुमारी से हुआ। वह भी बड़ी सती और समझदार सिद्ध हुई। जैसे ही गन्धार से जिसे आजकल कन्धार कहते हैं, वह हस्तिनापुर आई और उसे यह मालूम हुआ कि मेरे पति अन्धे हैं, वैसे ही उसने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली। पाण्डु का विवाह राजा कुन्तिभोज की पुत्री से हुआ। कुन्ती ने अपने कुआंरेपन में दुर्वासा ऋषि से एक ऐसा मंत्र पाया था कि जिसके करने से स्त्री जिस देवता का ध्यान करती थी, उसी के अनुरूप उसकी सन्तान भी गुण और सुन्दरता आ जाती थी। छोटी उम्र की नादानी में राजकुमारी कुन्ती ने सन्तान की कामना से सूर्य देवता का ध्यान किया, अतः उसने एक सन्तान पाई। बच्चा सचमुच सूर्य भगवान जैसा ही तेजस्वी और सुन्दर था। लेकिन कुंआरेपन में मां बनने की बदनामी भी कुछ कम न थी। कुन्ती ने अपने बेटे को एक डलिया में रखकर अच्छी तरह गद्दी-तोषक लगाकर उसे नदी में बहा दिया। कुन्ती भले ही राजकुमारी रही हो, फिर भी कुंवारेपन में मां बनने के कारण उसका थोड़ा-बहुत कलंक तो फैला होगा। शायद इसीलिए उसके पिता ने एक बीमार राजकुमार से उसका ब्याह रचाना स्वीकार किया हो।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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