महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
वनगमन
उर्वशी कमरे से बाहर गई और थोड़ी देर में शरबत, और नाश्ते का सामान स्वयं अपने ही हाथों से लेकर आई। उसने बड़े आग्रह से अर्जुन को वह शर्बत पिलाया। अर्जुन ने जब गिलास ख़ाली कर दिया, तब उर्वशी मुस्कराई और कहा- "हे अर्जुन, मैं बड़े दिल से अपनी प्रेम चाहना लेकर तुम्हारे पास आई थी। मैंने तुम्हें यह भी बतलाया था कि अप्सरा से प्रेम करने में कोई दोष नहीं होता। फिर भी तुमने कायर की तरह मेरा प्रेम अस्वीकार किया। मुझ जवान स्त्री को तुमने अपनी मां कहकर मेरा सबसे बड़ा अपमान किया है, इस अपमान का बदला लिए बिना मैं तुम्हें छोड़ नहीं सकती थी। अब मेरे शाप से तुम पुरुष नहीं रहोगे। श्रेष्ठ संस्कारों का दावा करने वाले मूर्ख अर्जुन मेरे शाप से अब तू हिजड़ों की टोली में मिलकर दूसरों के बेटे होने की खुशी में नाचने लायक हो गया है।" यह कहकर उर्वशी घृणापूर्वक हंस पड़ी। अर्जुन यह समझ गया कि उसके साथ कोई चालबाजी चली जा चुकी है। उसे मन ही मन में तो बड़ा क्रोध आया पर ऊपर से यह सोचकर वह शांत रहा कि पराई जगह में क्रोध करने से लाभ के बजाय हानि ही अधिक हो सकती है। अर्जुन ने सोचा कि यह अप्सरा देवराज के पास जाकर कोई नया झूठ-सच न जड़े, इसलिए वह सीधे इन्द्र के पास गये और सारा हाल सच-सच बतला दिया। इन्द्र यह सुनकर इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने उठ कर अर्जुन को अपने कलेजे से लगा लिया। वे बोले- "पुत्र! मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं, तुमने अपने वंश का नाम ऊंचा किया, तुम उर्वशी के शरबती शाप से तनिक भी चिन्तित न हो। ईश्वर जो करता है वह अच्छे के लिए ही करता है। कुछ महीनों बाद तुम लोगों का अज्ञातवास का तेरहवां वर्ष आरम्भ होगा, उस सयम उर्वशी का शाप तुम्हारे लिए वरदान सिद्ध होगा और उसके बाद मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि मैं तुम्हें उर्वशी की दुष्ट दवा के प्रभाव से एकदम मुक्त कर दूंगा। इन अप्सराओं के सारे नुस्खे मैं जानता हूँ और उनकी काट की औषधियां मेरे पास हैं। जो दवा उर्वशी ने तुम्हारा सारा जीवन बर्बाद करने के लिए तुम्हें पिलाई है उसका प्रभाव मेरी औषधि केवल एक ही वर्ष में दूर कर देगी। यही नहीं, बल्कि उसके प्रभाव से तुम्हारी खोई हुई शक्ति दुगुनी होकर तुम्हें वापस मिलेगी।" |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज