महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
राजसूय यज्ञ
सब भाई चुप थे, लेकिन उनके मन उबल रहे थे। भीमसेन ने कहा-देखिए हम आपकी बात भले ही मान जायं द्रौपदी देवी जो सोच चुकी हैं वह तो उसे आज ही करके रहेंगी और अर्जुन तो अपनी पत्नी का समर्थन कर ही रहा है। मैं भी इस पक्ष में हूँ कि बात-बात में हमारी हर वस्तु को तुच्छ बतलाकर अपने बुद्धि और शौर्य की हेकड़ी बघारने वाले मूर्ख की बुद्धि आज नापी जायगी। उसकी कोई गर्दन तो काटी नहीं जा रही है कि आप शांति-शांति का उपदेश देने लगे। और देवर-भाभी में सदा से हंसी-विनोद होता है। द्रौपदी सुयोधन के बीच में भला हम आप क्यों पड़ें? युधिष्ठिर ने अपने सब भाइयों को जब इसी मत का पाया तो फिर कुछ न कहा। चौथे पहर सुयोधन, सुशासन, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव आदि महलों के भीतर अपने निजी बगीचे में सैर करने के लिए गये। यह बगीचा यों तो बड़ी भूमि घेरे हुए था, परन्तु उस समय के बड़े-बड़े बगीचों के समान बहुत बड़ा नहीं था। पर इस अन्तःपुर के बगीचे में रानियों के मनोविनोद के लिए बड़ी-बड़ी चमत्कारी चीजें बनी हुई हैं। बनावटी झरने लुका-छिपी खेलने के लिए गुफाएं हैं और सब ऐसी कलात्मक हैं कि देखते ही मन लुभा जाता है। कई भूल भुलैया भी हैं। एक जगह चलते-चलते ऐसा लगता है कि अब रास्ते पर पानी आ गया और आगे भी पानी ही पानी भरा है। मगर सचमुच वहाँ ऐसा कुछ नहीं था। मय दानव इंजीनियर के यहाँ ईरान के कुछ ऐसे हुनरमन्द कारीगर भी थे कि जो पालिस करते-करते पत्थर को पानी की तरह चमका देते थे। सारनाथ का सिंह स्तम्भ जो महाभारत के कई सौ वर्ष बाद बना था और जिस चतुर्मुखी स्तम्भ को हमारे आज के स्वतन्त्र देश की सरकार ने अपना राज्य-चिह्न बनाया है उस जमाने की पालिस का प्रमाणपत्र देने के लिए आज भी मौजूद है। सो सुशासन? दुर्योधन एक जगह सबके साथ चलते-चलते एकाएक ठिठक कर खड़े हो गए। परन्तु दूसरे लोग आगे बढ़ने लगे। दुर्योधन बोले-अरे अरे! कहाँ पानी में जा रहे हो तुम लोग। द्रौपदी हंस पड़ी। बोली-वाह! लाला जी बड़ी मोटी दृष्टि है तुम्हारी भी। कभी-शायद ऐसे बगीचों में टहलने का अवसर तुम्हें पहले नहीं मिला। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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