महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
सत्यवती राजा की यह बात सुनकर लजा गई। उसने उत्तर दिया - "हे राजा, आप मेरे पिताजी को राजी कर लें। यदि वह हां कर देंगे तो मैं आपकी रानी बन जाऊंगी।" राजा शांतनु ने सत्यवती के पिता जी से जाकर अपने जी की बात कही। मछुवा बोला - "हे महाराज, मेरे बड़े भाग्य कि आप मेरी बेटी से ब्याह करना चाहते हैं। पर मैं अपनी बेटी का ब्याह आपके साथ करने में बहुत सकुचा रहा हूँ। आप ठहरे राजा और यह बेचारी गरीब की बेटी है। चार दिन बाद जब आपका जी इससे भर जाएगा तो आप इसकी ओर से अपना मुंह मोड़ लेंगे। इसलिए मैं अपनी बेटी का ब्याह नहीं करना चाहता।" राजा शांतनु बोले - "मैं तुम्हें वचन देता हूँ कि तुम्हारी बेटी को सदा अपनी आंखों की पुतली बनाकर रखूंगा। मैं तुमको भी इतना धन दूंगा कि तुम सुखी जीवन बिताने लगोगे।" मछुवे ने कहा - "आपके यह वचन देने पर भी मेरा जी अभी नहीं भरा। आप इसे तो अवश्य सुखी रखेंगे, पर इससे पैदा होने वाले आपके बेटों को निश्चय ही बड़ा दुख मिलेगा, क्योंकि आपके बाद राजगद्दी के हकदार गंगादत्त होंगे। सत्यवती के बेटों को उनकी गुलामी करनी होगी। इसलिए अगर आप मुझे यह वचन दें कि सत्यवती का बेटा ही आपके बाद राजा बनाया जायगा तो मैं खुशी से अपनी बेटी का ब्याह आपके साथ कर दूंगा।' राजा बोले - "मैं यह वचन नहीं दे सकता। अपने सुख के लिये मैं युवराज गंगादत्त का हक कभी नहीं छीनूंगा।" यह कहकर राजा शांतनु अपने महलों में लौट आये।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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