महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
राजसूय यज्ञ
जरासंध को मारने के बाद भीम ने गरज-गरज कर ऐसी दहाड़े मारीं कि कायरों के कलेजे दहल उठे। इन भाइयों ने पहले नर बलि दिए जाने के कैदी बनाये गए उन सारे राजाओं को मुक्त किया। राजा युधिष्ठिर के नाम की डुग्गी पिटवाई पाण्डवों तथा श्रीकृष्ण का आना सुनकर सभी लोग नये सिरे से इन महापुरुषों का दर्शन करने के लिए व्याकुल होने लगे। सभी दीन दुखियों ने उनको बहुत कुछ अशीषा। मगध जीत कर पाण्डव लोग सचमुच उत्तर भारत के सर्वश्रेष्ठ प्रतापी बन गए थे। उनकी धाक जमी, धन मिला, सेना बढ़ी और पाण्डव लोग दिग्विजय के लिए निकल पड़े। चारों भाइयों ने दूर-दूर तक विजय प्राप्त की। इस प्रकार कुछ ही वर्षों में इन्द्रप्रस्थ के राज-खजाने में अपार धन सम्पदा जमा हो गई। अनेक राज्य पाण्डवों का लोहा मानने लगे। यूनानी, शक और मंगोलों तक को अर्जुन ने अपने वश में कर लिया। इन देशों से अर्जुन बड़ी धन-संपदा ले आया। राजा के पास धन बढ़ने से राजधानी की प्रजा के पास भी संपदा बढ़ने लगी। चारों ओर खुशहाली देखकर धर्मराज ने अब राजसूय यज्ञ करने का निश्चय किया। बड़े-बड़े दूर के मित्र राजे-महाराजे न्योते गए। हस्तिनापुर के कौरवों को बहुत आग्रह साथ न्योता गया। भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, विदुर और सभी कौरव भाई इस अवसर पर इन्द्रप्रस्थ पधारे। बड़े समारोह के साथ यज्ञ हुआ। ब्राह्मणों और गरीबों को नित्य ही दान दिए जाते थे। यज्ञ के अन्त में अवशेष दिवस आया। सत्कार के योग्य सारे महर्षि ब्राह्मण और राजा लोग सभा-मण्डप में बुलाए गए, जब सब लोग आदर सहित अपने-अपने स्थान पर विराजमान हो गए, तब यह विचार हुआ कि सभा में पहला तिलक किस श्रेष्ठ पुरुष को लगाया जाय। इस सम्बन्ध में युधिष्ठिर ने अपने कुल के बड़े-बूढ़े भीष्म पितामह से सलाह मांगी। भीष्म ने कहा कि इस सभा में यों तो एक से एक नररत्न बैठे हैं परन्तु उनमें श्रीकृष्ण ही ऐसे महापुरुष हैं जिनमें सबसे अच्छे गुण तुम्हें एक साथ देखने को मिल जाते हैं, इसलिए तुम पहली पूजा श्रीकृष्ण की करो। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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