महाभारत कथा -अमृतलाल नागर पृ. 44

महाभारत कथा -अमृतलाल नागर

राजसूय यज्ञ

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राजा युधिष्ठिर ने प्रसन्न होकर कहा- "उस शत्रु का नाम बतलाओ कृष्ण, और उसके वध करने का उपाय भी मुझे बतलाओ।"

श्रीकृष्ण बोले मगध का राजा जरासंध इस समय उत्तर भारत का सबसे प्रतापी सम्राट है। उसके मुकाबले में न आपका दबदबा है और न हस्तिनापुर के कौरवों का ही। उसके दामाद कंस को मारने के बाद उसी के डर से तो हम अंधक, विष्णिओं और भोजों के अठारह कुरों को ब्रजभूमि छोड़कर द्वारका में बसना पड़ा। उसके कारण लोग मुझे आज तक ‘रणछोर जी’ कहकर बदनाम करते हैं। पर मैं क्या करता? उसकी असंख्य बर्बर सेना से मै। अपने आदमियों को कटवाने के लिए तैयार नहीं था, इसलिए युक्तिपूर्वक सबको भगा दिया और अंतिम अवसर पर लड़ाई का मोर्चा छोड़कर हम लोग भी भाग खड़े हुए। तो इस जरासंध को अगर आप जीत लें तो चारों ओर आपकी जै-जै कार हो जायगी।

यह सुनकर युधिष्ठिर गहरे सोच में पड़ गए उन्होंने कहा- "जरासंध की सेना अपार है। उत्तर पश्चिम में हिमालय पार भगदत्त[1] का कलसी राजा जरासंध का पक्का मित्र है, दक्षिण के पाण्डु राजा तक उसके आगे सिर झुकाते हैं। तुमने शत्रु तो सचमुच ऐसा बतलाया कि यदि जीता जा सकेगा तो एक ही दिन में चारों ओर हमारा डंका बज जायगा। पर कृष्ण जरासंध को हम आखिर किस उपाय से जीत सकते हैं।

श्रीकृष्ण बोले- "उपाय न सूझता तो मैं आपको ऐसे शत्रु का नाम न बतलाता। जरासंध की सैन्य शक्ति से लड़ना हमारे वश की बात नहीं है। परन्तु दूसरा भी उपाय मैंने सोच रखा है। जरासंध नामी पहलवान है। कुश्ती में और गदा युद्ध में उसकी टक्कर यदि कोई ले सकता है तो अपने भीम भाई ही हैं, जरासंध युक्तिपूर्वक कुश्ती के लिए ललकारा जायगा। ईश्वर की कृपा से इसी उपाय से आपको अनन्त यश लाभ हो जायगा।"

जरासंध एक ऐसा प्रबल शत्रु था जिसका पहले से ध्यान किए बिना ही उन्होंने अपनी राजसूय यज्ञ की महत्त्वाकांक्षा जगा ली थी। अब मन ही मन पछता रहे थे और कुछ कह न पाते थे। भीम बड़े प्रबल हैं पर जरासंध एक तो स्वयं प्रबल, दूसरे अनेक राक्षस धर्मी राजाओं को भी अपना मित्र बना रखा है। वह अकेले द्वन्द्व यद्ध में अपने एक भाई का त्याग करने से कतराने लगे। उन्होंने बात को शांतिपूर्ण भाव के उपदेश में बदलते हुए कहा कि जरासंध से टकराने की इच्छा हम तत्काल टाल जायें तो कुछ बुरा न होगा।

अर्जुन धर्मराज की टालमटोल मुद्रा से खौल उठा। उसने कहा- "भैया आपकी शांति इत्यादि की बातें अच्छी है, परन्तु रोग के समान ही शत्रु भी बिना उपचार के नष्ट नहीं होते।"

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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

  1. बगदाद

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10. सुभद्रा और अर्जुन का विवाह 38
11. राजसूय यज्ञ 42
12. जुए में पराजय 53
13. वनगमन 59
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15. कौरवों का आक्रमण 83
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