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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
सुभद्रा और अर्जुन का विवाह
श्रीकृष्ण की बातें इतनी सुलझी हुई और इतनी साफ थीं कि उपस्थित लोगों में बहुमत उनके साथ हो गया। तेज हरकारे दौड़ाये गये कि अर्जुन का रथ रोक लें और कुछ प्रमुख लोग घोड़ों पर सवार होकर अर्जुन और सुभद्रा को लौटा लाने के लिए गए। उनसे हंसकर कहा कि अरे आप मांगते तो हम हंसी-खुशी से सुभद्रा का ब्याह आपके साथ कर देते, पर आपने वीरोचित नीति अपनाकर सुभद्रा का हरण किया। इसलिए हम आपको यह बतलाने आए हैं कि हमें आपसे यह सम्बन्ध करना पसन्द है। आप कृपया हमारी जाति की कन्या का अपहरण करके न ले जाएं। हम बाजे-गाजे, दान-दहेज के साथ उसे आपको सौपेंगे। अर्जुन और सुभद्रा द्वारका लौट आये। बड़े समारोह के साथ दोनों का विवाह हुआ। वसुदेव ने अपनी दुलारी बेटी को बहुत सारा दान दिया और वनवास का शेष एक वर्ष द्वारका में ही बिताने का आग्रह अपने दामाद अर्जुन से किया। अर्जुन ने अपने पूज्य श्वसुर की आज्ञा शिरोधार्य की। एक वर्ष के बाद वे अपनी ससुराल वालों से विदा लेकर अपनी पत्नी सुभद्रा के साथ इन्द्रप्रस्थ की ओर चले। श्रीकृष्ण भी अपने सब भाइयों और बुआ से मिलने के लिए उसके साथ हो लिये। इन सबके पहुँच जाने से 12 वर्ष बाद पाण्डव कुल में उत्सव मनने लगा। अर्जुन के न रहने से चारों भाई द्रौपदी और कुन्ती माता दुखी रहा करते थे। आज सबके लिए मंगल का दिन आया था। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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