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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
सुभद्रा और अर्जुन का विवाह
श्रीकृष्ण भोले बन गये और कहा- "मैंने तो मित्र की मांग पर अपना रथ उसे दिया था। मुझे क्या मालूम था कि अर्जुन मेरे ही रथ पर मेरी बहन को उठा ले जायगा।" बलराम बोले- "मैं तो सदा से जानता था कि यह दुष्ट इतना आदर सत्कार पाने योग्य नहीं है। कृष्ण इस मामले में हम तुम्हारी मित्रता का तनिक भी मान नहीं रखेंगे। एक श्रेष्ठ कुल की यादव कन्या का अपहरण करने वाले दुष्ट को हम निश्चय ही पकड़ कर दण्ड देंगे।" वहाँ पर बैठे अन्य नेता भी ऐसी गरमागरम बातें करने लगे और श्रीकृष्ण बैठे चुप-चाप सुनते रहे। जब सब नेता अपनी-अपनी स्पीचें झाड़ चुके तो श्रीकृष्ण ने ठंडे स्वर में कहा- "भाई, तुम सबके समान ही मुझे भी इस बात का बुरा लगा है कि मेरे एक घनिष्ठ मित्र ने मेरे साथ छल किया। मेरे ही रथ पर वह मेरी बहन का हरण करके ले गया। वह निश्चय ही दण्ड देने योग्य है। पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि हममें से कौन इस योग्य है जो अर्जुन के बाणों के आगे ठहर सके।" "बलराम भैया हल और गदा से युद्ध करने में तो अद्वितीय हैं, पर दूर से आते हुए अर्जुन के बाणों से वे भी नहीं लड़ सकते। हम लोगों ने आपस में लड़ना-भिड़ना और बड़ी-बड़ी डीगें हांकना तो बहुत सीख लिया है, पर युद्ध-कला सीखने और अपनी शक्ति बढ़ाने की ओर से हम सब यादव लोग इस समय दुर्भायवश एकदम ध्यान हटाते हुए हैं। मेले में इस बार जो हमारी जातीय प्रतियोगितायें हुईं उनका गिरा हुआ स्तर देखकर तो बलराम भैया को भी बड़ी लज्जा आयी होगी। जब हमारी जाति की यह दुर्दशा हो गई तो निश्चय ही कोई शक्तिशाली हमारी कन्यायें भला क्यों न हर ले जायें। अस्तु, ऐसी परिस्थिति में मेरी सलाह यह है कि तुम लोग अर्जुन से समझौता करके इस समय अपनी लाज बचाओ। एक शक्तिशाली पुरुष को नातेदार बनाकर हम लोग लाभ में ही रहेंगे, कुछ घाटे में नहीं। जाओ, सब लोग अर्जुन को मना लाओ। हंसी-खुशी धूम-धाम से, प्रेम से सुभद्रा का ब्याह करो। और भविष्य के लिए सचेत होकर अपनी शक्ति को बढ़ाने के उपायों में लगो, जिससे आगे फिर कभी ऐसी कोई दुर्घटना न हो सके।" |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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