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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
सुन्द, उपसुन्द की कथा
यह कथा सुनाकर नारद जी बोले- "हे धर्मात्मा पाण्डव, मैंने तुमको यह कथा इसलिए सुनाई है कि नारी के सम्बन्ध में तुम पांचों भाई आपस में कभी मन-मुटाव मत करना। तुम्हारी माता ने तुम्हें हिमालय की तराई में बसने वाले लोगों की रीति-नीति के अनुसार एक पत्नी के पांच पतियों का पद दिया है। जिन जातियों में साझे के विवाह का नियम चलता है उनमें समझौते के कुछ नियम भी पाले जाते हैं। पहला नियम यह है कि सब भाई बारी-बारी से उस पत्नी के पति बनते हैं। बारी पड़ने पर स्त्री जब बड़े भाई की पत्नी बनती है तो सब छोटे भाई उसे वैसा ही आदर देते हैं। इसी प्रकार जब वह क्रम से छोटे भाई की पत्नी बनती है तो बड़े भाई उसके प्रति वैसा ही मर्यादा का भाव रखते हैं। तुम अगर इस नियम का पालन करोगे तो तुम्हारे बीच में द्रौपदी को लेकर कभी लड़ाई झगड़ा नहीं होगा।" नारद जी की इस सलाह पर विचार करके धर्मराज युधिष्ठिर ने सब भाइयों की बारियां बांध दीं और यह नियम भी बनाया कि जब द्रौपदी किसी एक भाई के साथ एकान्त में हो तो दूसरा भाई वहाँ कभी न जाये। अगर कोई ऐसा करेगा तो उसे 12 वर्ष का वनवास झेलना पड़ेगा। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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