महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
राजा शांतनु ने गंगा की बड़ी खुशामद की और कहा - "हे सुन्दरी, अगर तुम मुझसे ब्याह नहीं करोगी तो मैं अपनी जान दे दूंगा, इससे तुमको बड़ा पाप लगेगा।" बहुत कहने-सुनने पर गंगा राजी हो गयी। उसने कहा - "हे राजा, तुम्हारा प्रेम देखकर मेरा मन भी पसीजने लगा है। मैं तुमसे ब्याह करने को राजी हूं, पर इसके पहले तुम्हें मुझे एक वचन देना होगा।" राजा शांतनु - "बोलो देवी, तुम मुझसे क्या वचन चाहती हो?" गंगा बोली - "वचन दो कि मेरे किसी काम में तुम अड़चन नहीं डालोगे, मेरी मर्जी में जो आयेगा वही मैं करूंगी। और अगर तुमने कभी बाधा डाली तो मैं तुरन्त तुम्हारा साथ छोड़कर चली जाऊंगी।" राजा शांतनु तो गंगा से किसी प्रकार विवाह करना चाहते थे। वे शायद यह नहीं जानते थे कि ऐसी स्त्रियां अप्सरा कुल की होती हैं। अप्सरा शब्द के अर्थ में पानी में विहार करने वाली स्त्री। गंगा, जमुना, नर्मदा अथवा किसी पवित्र पुष्कर आदि के तट पर इनका निवास होता है। प्राचीन काल में ऐसी अप्सराएं राजा इन्द्र के दरबार में भी रहा करती थीं। इन्द्र की अप्सरा उर्वशी ने भी राजा पुरुरवा से इसी प्रकार एक वचन लेकर विवाह किया था। खैर, राजा शांतनु गंगा को ब्याह कर उसे हस्तिनापुर ले आये। थोड़े दिनों बाद उनके एक बेटा हुआ। राजा बहुत ही प्रसन्न हुए, लेकिन गंगा ने निठुराई दिखलाई। एक दिन वह अपने बेटे को लेकर गंगा नदी के किनारे गयी और उस नन्हीं सी जान को नदी में डुबा दिया। राजा शांतनु बेचारे कलेजा पकड़कर रह गये, पर कुछ कह न सके। समय आने पर उन्हें दूसरा बेटा हुआ। गंगा रानी उसे भी गंगा जी में डुबा आयीं। इस प्रकार राजा शांतनु के सात लड़के हुए और सातों को उस निठुर माता ने नदी में डुबो दिया। राजा शांतनु यों तो अपनी रानी को बहुत चाहते थे, पर उसकी निठुराई देख-देखकर उनका मन बहुत पक गया था। इसलिये जब आठवां बेटा हुआ और गंगा रानी उसे भी डुबाने के लिए चलीं तो राजा शांतनु उसकी राह रोककर खड़े हो गए। उन्होंने कहा - "हे रानी, तुम्हारी निठुराई देखकर अब मुझसे रहा नहीं जाता। इसलिए मैं अपना वचन भंग करके तुम्हें इस बच्चे को नदी में डुबाने से मना करता हूँ। गरीब से गरीब व्यक्ति भी संतान के लिए तरसता है, फिर मैं तो राजा ठहरा। तुमने मेरे सात बेटे डुबो दिये, अब मैं इसे अपने पास रखूंगा। मेरे बाद यही हस्तिनापुर का राजा होगा।" |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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