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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
सुन्द, उपसुन्द की कथा
देवधर्मी लोगों ने सोचा कि इन भाइयों को और कोई तो हरा नहीं सकता। हां, अगर यह किसी तरह से आपस में ही लड़ मरें तो जनता का यह संकट समाप्त हो सकेगा। विचार करते-करते उन्होंने सोचा कि केवल कोई अद्भुत सुन्दरी इन भाइयों के बीच में युद्ध का कारण बन सकती है। खोजते-खोजते उन्हें एक अपूर्व स्त्री मिल गई। वह जैसे सुन्दरी थी वैसी ही चतुर नाचने और गाने वाली भी थी। बातें ऐसी मीठी करती थी कि सुनने वाला मुग्ध हो जाता था। उस सुन्दरी युवती का नाम तिलोत्तमा था। देवता लोग उसे मनाकर, लोक कल्याण की दुहाई देकर अपने साथ ले आये। एक दिन जब सुन्द, उपसुन्द दोनों भाई अपनी किसी नई जीत व नई लूट से आये हुए अपार धन और कैद करके लाई हुई सुन्दर स्त्रियों को देखकर बहुत प्रसन्न हुए तो उन्होंने उस दिन खूब राग-रंग मनाने का निश्चय किया। दोनों भाई अपने सुरम्य बगीचे में चले गये। उनके महलों की चतुर दासियां और सुन्दर नर्तकियां भी कैद करके लाई गई सुन्दरी स्त्रियों के साथ उस बाग में पहुँच गईं। दासियां दोनों भाइयों को बढ़िया मदिरा पिलाने लगीं और दोनों भाई मतवाले होकर उन कैदी सुन्दरियों को तंग करने लगे। सुन्द, उपसुन्द के पास तिलोत्तमा को भेजने के लिए यही अवसर सबसे अच्छा था। तरकीब से तिलोत्तमा भी उस बगीचे में पहुँचा दी गई। तिलोत्तमा ने बहुत ही अच्छे-अच्छे गहने और कपड़े पहन रखे थे। वह बहुत चतुर और निडर भी थी। उसने पेड़ों की आड़ में खड़े होकर सामने आने का अवसर साधा। एक बेचारी भली सी वंदिनी इन दोनों भाइयों के हाथ जोड़-जोड़कर इनसे तंग न करने की प्रार्थना कर रही थी और दोनों भाई हंस-हंसकर मदिरा पीते हुए तंग करने की नई तरकीब खोज रहे थे। अचानक घुंघरू झुनझुन करके बज उठे और दोनों भाइयों का ध्यान उधर गया। उन्होंने देखा कि उनसे थोड़ी ही दूर पर एक पेड़ की डाल से एक परी जैसे सुन्दरी धम्म से धरती पर कूदी और अलबेला नाच नाचने लगी। दोनों भाइयों ने जो यह दृश्य देखा तो बस देखते ही रहे गये। ऐसी अपूर्व सुन्दरी और अद्भुत नर्तकी एक तो उन्होंने पहले कभी देखी नहीं थी। दूसरे, शराब के नशे में वह उन्हें और सुन्दर, अधिक अलबेली दिखलाई पड़ने लगी। सुन्दरी तिलात्तमा जैसा नाचती थी, वैसा ही गाती भी थी। उसका स्वर ऐसा मीठा था कि कोयल की कूक भी उसके आगे फीकी पड़ जाती थी। वह गाती और फिर नाचकर गीत के भाव को दर्शाती थी। जब तलोत्तमा का नृत्य और गीत रुका तो दोनों भाई उसके प्रेम में दीवाने होकर तेजी से दौड़े। एक ने उसका दाहिना हाथ पकड़ा, दूसरे ने बायां। दोनों ही भाई तिलोत्तमा को अपनी ओर खींचने लगे। तिलोत्तमा बड़ी सफाई से इन दोनों मतवाले बलशालियों की पकड़ से अलग जा छिटकी और हाथ जोड़कर कहा कि मैं कुमारी कन्या हूँ। पहले आप दोनों भाई आपस में यह तय कर लीजिए कि मैं किसकी वधू बनूं। तब मुझे आप दोनों में से किसी के पास भी आने में इन्कार न होगा। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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