महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
द्रौपदी स्वयंवर
यह प्रकट होने पर कि स्वयंवर जीतने वाला वीर स्वयं अर्जुन ही है, राजा द्रुपद बहुत प्रसन्न हुए। इसी अर्जुन के बूते पर द्रोणाचार्य ने उन्हें हराया था। वह वीर अब उनका दामाद हो गया है, यह जानकर उन्हें बड़ी ही प्रसन्नता हो रही थीं। राजा द्रुपद और द्रौपदी को सब बातें समझाकर पाण्डव लोग अपनी माता कुन्ती के पास आये। द्वार पर ही युधिष्ठिर ने कहा- "मां हम भाई भीख में एक बहुत बड़ा अमूल्य रत्न पा गये हैं।" कुन्ती मां ने भीतर ही से कह दिया कि अच्छा बेटा, पांचों भाई उसमें हिस्सा ले लेना। लेकिन द्वार खोलकर कुन्ती माता ने देखा कि वह रत्न मामूली नहीं बल्कि नारी-रत्न है तो बड़ी चिन्ता में पड़ गईं। बहुत सोच-विचार कर उन्होंने कहा- "मेरे मुंह से निकली हुई बात को अब झुठलाया तो नहीं जा सकता। हमारे देश में यद्यपि स्त्री एक ही पति की पत्नी हुआ करती है, पर केवल यही चलन प्रचलित नही है। हमारे देश में ऐसी भी बहुत जातियां हैं जिनमें एक स्त्री कई भाइयों की पत्नी बनती है। जौनसार में, नेपाल और केरल आदि में यह चलन खूब प्रचलित है। राजकुल के लोग भी इसे बुरा नहीं मानते। इसलिए द्रौपदी का विवाह तुम पांचों भाइयों से होगा।" जब राजा द्रुपद के कुन्ती माता का यह आदेश सुना तो उनको बड़ी चिन्ता हुई, पर संयोग से भगवान वेदव्यास जी वहाँ आ गये। उन्होंने द्रुपद से कहा कि कुन्ती रानी की बात मान लो और द्रौपदी का विवाह पांचों भाइयों से कर दो। इस विवाह में मेरे रहने से तुम्हारी बदनामी नहीं होगी। ब्याह में कुन्ती माता ने अपने सगे-संबंधियों में अपने भतीजे श्रीकृष्ण को बुलाना उचित समझा। वह जानती थीं कि पाण्डवों के जीने की सूचना पाकर उनके हस्तिनापुरी रिश्तेदारों को मानो सांप ही सूंघ जायगा। इसलिए खुशी के अवसर पर ऐसे नातेदार को बुलाना ही उचित होगा जो खुश हो। ब्याह बड़ी धूमधाम से हुआ। राजा द्रुपद ने अपने हर दामाद को खूब साज-सामान दिया। सैकड़ों दास-दासियां, सोने, चांदी के बर्तन, कपड़े सब कुछ दिया। राजा धृतराष्ट्र और दुर्योधन के यहाँ तो आठों पहर की पंचायत बैठ गई। अब क्या करें? |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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