महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
द्रौपदी स्वयंवर
होते-करते स्वयंवर का दिन आ गया। ऊंचे-ऊंचे मंचों पर भव्य सिंहासन रखे हुए थे। बड़े-बड़े यशस्वी तेजस्वी राजा उन पर विराजमान थे। महकते फूलों के बन्दनवार लगे हुए थे। चन्दन का छिड़काव हो रहा था। चारो तरफ ऐसा तेज ही तेज फैल रहा था कि कहीं आंखे ठहर ही न पाती थीं। हर राजा और राजकुमार अपना बड़प्पन दिखलाने के लिए हीरे-मोतियों के गहने और सुनहरे कपड़ों से लदा हुआ था। मण्डप के एक ओर ब्राह्मण मण्डली भी विराजमान थी। स्वयंवर का तमाशा देखने के लिए भी दूर-दूर से लोग आये थे। राजा द्रुपद ने उन लोगों के बैठने के लिए भी उत्तम प्रबन्ध कराया था। ब्राह्मणों ने मन्त्रोच्चार किया। फिर राजा द्रुपद के बेटे धृष्टद्युम्न ने अपनी बहन को सभामण्डप में लाकर सब राजाओं का परिचय उसे दिया। द्रौपदी सांवली अवश्य थी, पर उसकी सुन्दरता मन को खींचने वाली थी। उसे देखकर हर राजा और राजकुमार मन-ही-मन बावला हो गया। उनमें से हर व्यक्ति यही सोचने लगा कि यह राजकुमारी मेरी ही पत्नी बनेगी। सभा में मंच पर खड़े होकर धृष्टद्युम्न ने ऊंचे स्वर में सब राजाओं से कहा कि जो इस नाचती हुई सोने की मछली की आंख बेध देगा, उस सत्कुल वाले वीर को मेरी बहन अपना पति मान लेगी। बड़े-बड़े राजा वहाँ मौजूद थे। बंगाल नरेश, कलिंग नरेश, दक्षिण के पाण्डु राजा, दूर गान्धार वाल्हीक के पवन राजा, हस्तिनापुर के दुर्योधन, कर्ण और अश्वत्थामा जैसे वीर उस सभा में उपस्थित थे। सबसे पहले चेदि नरेश उठे। मछली के नीचे तेल कुण्ड के पास रखे धनुष को उठाकर वे जैसे ही उसकी डोरी चढ़ाने चले तो उसके झटके से दो पटकनियां खाईं। सिर झुकाकर चुपचाप चले आए। इसके बाद एक-एक करके कई राजा उठे, पर लक्ष्य वेध करने में कोई सफल नहीं हुआ। हस्तिनापुर के राजकुमार दुर्योधन दुर्गत बनवाकर लौट आये। जो राजकुमार हार कर लौटता, उसी की हंसी होती थी। दुर्योधन के बाद कर्ण उठे। उन्हें उठते देखकर ही द्रौपदी बोली- "मैं सारथी के बेटे से ब्याह नहीं करूंगी।" यह सुनना था कि कर्ण का चेहरा लाल हो गया। क्रोध में सिर झुकाये वह चुपचाप आकर अपनी जगह पर बैठ गया। जब राजाओं में कोई भी ऐसा प्रतापी न निकला तो राजा द्रुपद ने सीता जी के पिता राजा जनक के समान ही निराशा प्रकट की कि शायद विधाता ने मेरी बेटी के भाग्य में विवाह ही नहीं लिखा। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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