महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
बाप बेटे की लड़ाई
परन्तु बेटे ने बाप के सारे क्रोध को अपनी शक्ति से काट कर निकम्मा साबित कर दिया। अर्जुन झुंझला उठे। वह कोई भयानक अस्त्र का प्रयोग नहीं करना करना चाहते थे। फिर भी क्रोध चूंकि उबल उठा था इसलिए वह किसी शक्ति का प्रयोग करने की बात भी सोचने लगे थे। क्रोध और मोह के इस आधे पल के मनोसंघर्ष में अर्जुन ठिठक गये। उधर अपने बचाव के लिए सतर्क योद्धा बेटे के धनुष से एक ऐसी शक्ति भी छूट चुकी थी कि जिसके आघात से अर्जुन मूर्च्छित होकर गिर पड़े। सारी पाण्डव सेना और मणिपुर की प्रजा को मानो सांप सूंघ गया। वभ्रुवाहन ने मूर्च्छित होकर गिरते ही अपने पिता को सम्हाल लिया और अपनी गोद में उनका सिर रखकर धरती पर बैठ गया। प्रारम्भिक उपचारों के लिये लड़वैयों के आस-पास रहने वाले चतुर वैद्य दौड़े। बड़े उपचार हुए लेकिन शक्ति तेज लगी थी और मूर्छा गहरी थी। मणिपुर वालों को यह दुख था कि हमारे राज्य का दामाद हमारे ही यहाँ मारा गया। सब लोग उलूपी को कोस रहे थे कि यह न जाने कहाँ से आ टपकी और बाप-बेटे में ठनवा दी। चित्रांगदा और उलूपी दोनों ही रानियां युद्ध क्षेत्र में पहुँचीं। चित्रांगदा तो बेचारी फूल-सी कुम्हलाई हुई एकदम बेजान संगमरमर की मूर्ति बन गयी थी। रास्ते भर वह रथ पर वैसे ही बैठी रही लेकिन उलूपी रानी का चेहरा तेज और आनन्द से दमक रहा था। दोनों जब रथ से उतर कर उस जगह के पास पहुँचीं जहाँ अर्जुन पड़े थे तो चित्रांगदा ऐसे लड़खड़ा कर गिरने लगी जैसे सूर्य की तपन से मोम की पुतली पिघलने लगी हो उलूपी ने तुरन्त ही अपनी दोनों बांहों का सहारा देकर उसे सम्हाला और फिर झिड़क कर कहा, “सावधान हो पगली मेरे पहुँचते ही पाव-घड़ी के भीतर पतिदेव हम लोगों से बोलते हुए दिखलाई पड़ेंगे।” |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज